बुधवार, 23 अप्रैल 2008

बुंदेलखंड में जलस्रोत बचाने के लिए सत्याग्रह

बांदा, 19 अप्रैल (आईएएनएस)। केंद्र सरकार की केन-बेतवा नदी गठजोड़ परियोजना के विरोध और बुंदेलखंड के सूखते जा रहे परंपरागत जल स्रोतों को बचाने की मुहिम में अब मैग्सेसे पुरस्कार विजेता राजेंद्र सिंह भी कूद रहे हैं।
बांदा के ऐतिहासिक अशोक लाट तिराहे पर पानी के लिए आज से 'नदी बचाओ तालाब बचाओ' सत्याग्रह शुरू हुआ है। इस सत्याग्रह के संयोजक सुरेश रैकवार के अनुसार जोहड़ वाले बाबा के नाम से जाने जाने वाले राजेन्द्र सिंह रांची से बांदा पहुंच रहे हैं। उन्होंने कहा कि श्री सिंह केन-बेतवा नदी गठजोड़ से होने नुकसान से भी जनता को अवगत कराएंगे।
दरअसल जल के पारंपरिक स्रोतों के सूखते जाने ने तो बुंदलखंड की हालत बेहाल की है लेकिन अब केन-बेतवा नदी गठजोड़ परियोजना से आने वाली समस्याओं के अंदेशे से भी उनकी नीदें उड़ती जा रही हैं। सुरेश रैकवार के अनुसार बांध बनाकर केन का पानी बेतवा में स्थानान्तरित करने का निर्णय आत्मघाती साबित होगा।
पानी की समस्या का विकराल रूप पिछले पांच सालों से पड़ रहे सूखे की देन है। इस दौरान 224 हजार हेक्टेयर भूमि में तमाम तालाब, पोखर और झीलें सूख गईं हैं। राजस्व अभिलेखें के अनुसार बांदा के 27431, हमीरपुर के 5809, झांसी के 95278, ललितपुर के 48337, महोबा के 31448, जालौन के 8908 और चित्रकूट के 3000 से ज्यादा कुएं सूख गए हैं अथवा कीचड़युक्त हो निष्प्रयोज्य हो गए हैं।
इतनी ही नहीं बुंदेलखण्ड से बहने वाली नदियां चन्द्रायक, सियाम, करोरन, बन्ने, सोनार, बिछुई, कुंआरी, बागै, मंदाकिनी, उर्मिल, बानगंगा, धंसजामनी आदि में जल स्तर निरंतर घटता जा रहा है। रोटी-पानी के किस कदर लाले पड़े हैं इसका अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि रबी की फसल की औसतन पैदावार दस किलाग्राम प्रति बीघा आ रही है।
महोबा के 63 गांव तो ऐसे हैं जहां एक बूंद पानी भी नहीं है और लोग इंतजार करते हैं कि कब सरकारी टैंकर आएं और उन्हें दो बूंद पानी नसीब हो सके। नौबत पानी लूटने की आने लगी है। सिंचाई विभाग की ओर से हाल ही में दो दर्जन लोगों पर पानी लूटने का मुकदमा दर्ज कराया गया था जिसे बढ़ते जन दबाव के चलते बाद में वापस करना पड़ा।

खबरें तो ऐसी भी आ रही हैं कि जिनके पास निजी नलकूप हैं वे लोग अब पानी बेचने भी लगे हैं हालांकि प्रशासन इसे नहीं स्वीकारता। उसकी अपनी मजबूरियां जो ठहरीं। बहरहाल अब देखना यह है कि ऐसे विषम हालात में प्राकृतिक जल स्रोतों को बचाने और उन्हें साफ करने के लिए शुरू हुए आंदोलन में राजेन्द्र सिंह क्या भूमिका निभाते हैं और इसका क्या नतीजा सामने आता है।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस

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