सोमवार, 28 अप्रैल 2008

क्या हम धरती को बचा सकते हैं?

टाइम्स न्यूज नेटवर्क

क्लाइमेट चेंज एक ऐसी डरावनी हकीकत है जिसे हम अब और नजरंदाज नहीं कर सकते। धरती का तापमान दिनोंदिन बढ़ रहा है , जंगल खत्म होते जा रहे हैं , जलाशय सूखते जा रहे हैं , ध्रुवों पर जमी बर्फ की चादर पिघल रही है और सागरों का जलस्तर बढ़ रहा है। कार्बन एमिशन्स खतरनाक तरीके से बढ़ रहे हैं और धरती का भविष्य अंधकारमय नजर आ रहा है। बेमौसम बरसात , वक्त से पहले गर्मी और लंबा जाड़ा , यह सब हम देख सकते हैं। राजस्थान के जैसलमेर और बीकानेर जैसे शहर जहां पर बारिश न के बराबर होती थी , वहां अब हर साल बाढ़ आने लगी है। 26 जुलाई 2006 को मुंबई में जो हुआ , वह भी सबने देखा। मौसम में बदलाव की वजह से उत्तर भारत में क्रॉप पैटर्न बदल रहे हैं। जानकारों के मुताबिक हर साल जीव-जंतुओं और पौधों की सैकड़ों प्रजातियां हर साल विलुप्त हो रही हैं। शहरों में प्रदूषण के चलते तमाम नई बीमारियां पैदा हो रही हैं। अंधाधुंध दोहन के चलते दुनिया में पीने के पानी की कमी होती जा रही है। केवल भारत ही नहीं , अंधे विकास की वजह से पूरी दुनिया बदल रही है और यह बदलाव डरावने हैं।

अब किनारे पर खड़े रहकर तमाशा देखने का वक्त नहीं है। अब वक्त है पुख्ता कदम उठाने का। अपने स्तर पर और लोगों के साथ हमें अब ऐसे काम करने होंगे जिससे धरती को जीने के लिए बेहतर जगह बनाया जा सके। आज अर्थ डे (पृथ्वी दिवस) के दिन हम यह प्रण करें कि हम पृथ्वी और मानव जाति को बचाने के लिए कोशिश करेंगे। हम चाहते हैं कि इस खास दिन आप खुद तय करें कि धरती की सुरक्षा के लिए आप क्या कदम उठाएंगे। आप ऐसा क्या करेंगे कि आने वाली पीढ़ियां आपकी शुक्रगुजार रहें। अगर आपके पास कुछ ऐसे टिप्स और सलाह हैं तो उसे दूसरे रीडर्स के साथ बांटें। अगर आप पर्यावरण सुरक्षा या ऐसे किसी मुद्दे से जुड़े हैं तो दूसरे रीडर्स को भी अपने साथ जोड़ने के लिए आप यहां अपील कर सकते हैं।
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