शनिवार, 24 मई 2008

बच सकता है लाखों लीटर पानी

भास्कर
बच सकता है लाखों लीटर पानी। हम यदि थोड़ी समझदारी से होली खेलें तो सड़कों पर व्यर्थ पानी नहीं बहेगा। हमारे शास्त्रों में भी जल की बर्बादी को ‘पाप’ की श्रेणी में रखा गया है। यदि हम चाहें तो इस पाप से बचते हुए एक जिम्मेदार नागरिक की तरह अपने दायित्वों का निर्वहन कर होली की रंगत कुछ और बढ़ा सकते हैं।

ऐसे नहीं
होली के मौके पर इस बार भी हमारे शहर के लोगों को नगर निगम द्वारा अतिरिक्त जल उपलब्ध कराया जाएगा। यह अतिरिक्त जल 15 एमजीडी (मिलियन गैलन प्रतिदिन) होगा, जिसकी मात्रा प्रतिदिन शहर में होने वाली पानी की खपत के बराबर है। अर्थात अन्य दिनों की अपेक्षा होली पर शहरवासियों को दोगुना पानी मिल सकेगा। यदि हम चाहें तो अपने छोटे-से प्रयास से होली पर बर्बाद होने वाले इस अतिरिक्त पानी को बचाकर जल संकट से निपटने में अपना कुछ योगदान दे सकते हैं।

मुरार निवासी राकेश कुशवाह कहते हैं कि लोगों को होली का मतलब पानी की बर्बादी नहीं समझना चाहिए। जो लोग यह सोचते हैं कि होली में जितना चाहे पानी बहाया जा सकता है, वह पूरी तरह गलत हैं। बेशक होली रंगों का त्योहार है, पर हम दूसरे तरह से भी होली खेल सकते हैं। रंगों की बजाय एक-दूसरे को गुलाल लगाकर इस त्योहार को और अच्छे तरीक से मना सकते हैं।

इसी तरह थाटीपुर में रहने वाले आशीष भारती कहते हैं कि पिछले कुछ सालों में शहर में पानी की समस्या देखने को मिल रही है। इसलिए हम लोगों को चाहिए कि एक जिम्मेदार नागरिक की तरह पानी की बर्बादी न करें। जिस तरह होली खेलने के बाद लोग रंग साफ करने के लिए पानी बहाते हैं, उससे बहुत मात्रा में पानी की बर्बादी होती है।

यदि हम चाहें तो एक-दो बाल्टी पानी में अपनी जरूरत पूरी कर सकते हैं, फिर भी लापरवाही से पानी बहाते रहते हैं। इसलिए लोगों को चाहिए कि पानी का महत्वता समझें। सिटी सेंटर में रहने वाली सीमा शर्मा कहती हैं कि वह जब भी होली पर लोगों को पानी बर्बाद करते देखती हैं तो बहुत अफसोस होता है। आज शहर में कई ऐसे स्थान हैं, जहां पर्याप्त मात्रा में पानी नहीं पहुंचता है।

कई लोगों को पीने का पानी तक उपलब्ध नहीं हो पाता, ऐसे में होली के मौके पर पानी बर्बाद करना समझदारी नहीं है। उनका कहना है कि हम सब लोगों को होली पर मिलने वाले अतिरिक्त पानी को स्टोर कर लेना चाहिए। उस पानी का इस्तेमाल जिस दिन पानी नहीं आए, उस दिन घर के कामों में किया जा सकता है।

करें जल संकट पर विचार
शहर में पानी को लेकर संकट की स्थिति बनी हुई है। यही वजह है कि लोगों को अल्टरनेट पानी उपलब्ध कराया जाता है। होली की खुशियों में हमें इन स्थितियों को नजर अंदाज नहीं करना चाहिए। मार्च आते-आते पानी की यह परेशानी और बढ़ने की संभावना है।

शहर में जल आपूर्ति के दो प्रमुख स्रोत हैं, पहला तिघरा और दूसरा टच्यूबवेल। स्थिति यह है कि मुरार उपखंड में 25 प्रतिशत टच्यूबवेल सूख चुके हैं। कुछ यही हाल ग्वालियर उपखंड का भी है। सबसे अधिक संकट पश्चिम क्षेत्र में है, जहां 60-65 प्रतिशत टच्यूबवेल सूख चुके हैं।

वाष्पीकरण से कम होगा जल स्तर
तिघरा में सीमित मात्रा में पानी है। अनुमानत: यह पानी 31 मार्च तक की आपूर्ति कर सकता है। जब गर्मी अधिक पड़ेगी तो वाष्पीकरण होगा और तिघरा का जल स्तर और कम होगा। लगभग दो से तीन फीट तक पानी का स्तर कम होगा। अब टच्यूबवेल की बात की जाए तो इसका जल स्तर भी काफी नीचे जा चुका है। फस्र्ट लेयर खत्म हो चुकी है और पानी निकालने के लिए दूसरी लेयर यानी 100-150 फीट नीचे जाना पड़ता है।

पानी कम नहीं, बर्बादी ज्यादा
हमारे शहर में लगभग 76 हजार नल कनेक्शन हैं। प्रत्येक व्यक्ति को औसतन प्रतिदिन 140 लीटर पानी की आवश्यकता होती है, जबकि मिलने वाले पानी की मात्रा 120 से 130 लीटर प्रतिदिन है। कई क्षेत्रों में आवश्यकता के अनुरूप या उससे अधिक भी जल उपलब्ध हो रहा है। सबसे बड़ी परेशानी पानी की बर्बादी है। यदि संतुलित रूप से जल का इस्तेमाल किया जाए तो प्रत्येक व्यक्ति को उसकी जरूरत का पानी मिल सकेगा।

सूखी होली खेलें
>> पानी की कमी को देखते हुए लोगों को चाहिए कि वह सूखी होली खेलें। इस तरह वह जल संरक्षण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। यह अच्छी बात है कि सामाजिक संस्थाएं और आमजन इस दिशा में प्रयास कर रहे हैं। पानी की बर्बादी रोकने के लिए सबको मिल-जुलकर प्रयास करने होंगे।
विवेक शेजवलकर , महापौर

ऐसे खेलें होली
होली का उत्साह चारों ओर दिखाई दे रहा है। रंग लोगों के चेहरे पर भले ही न दिख रहे हों रंगों से खेलने की उमंग सभी के मन में हिलोरे मार रही है। वर्तमान जलसंकट को देखते हुए लोगों को होली की उमंग भारी पड़ सकती है क्योंकि अगर लोगों ने हर वर्ष की तरह उमंग व उल्लास के साथ रंगों से सराबोर होकर होली मनाई तो एक दिन में १ करोड़ 52 लाख 57 हजार 946 लीटर पानी अतिरिक्त खर्च होगा।

होली खेलने वालों ने अगर प्राकृतिक रंग या गुलाल से होली खेली तो कुल 36 लाख 95 हजार 518 लीटर पानी की बचत होगी। यह आंकड़ा सामने आया भास्कर द्वारा होली की तैयारियों में लगे सभी वर्गो के लोगों के बीच सर्वे के पश्चात। पानी खर्च का आंकड़ा निकालने के लिए विशेषज्ञों से चर्चा की।

विशेषज्ञों के अनुसार सामान्य तौर पर नहाने में 20 लीटर पानी प्रतिदिन प्रति व्यक्ति खर्च होता है। सूखे रंग या गुलाल से होली खेलने के पश्चात 40 लीटर पानी खर्च होगा पर अगर यही होली कैमिकल युक्त रंगों से खेली जाती है तो रंग छुड़ाने व नहाने में 60 लीटर पानी की खपत होगी।
http://www.bhaskar.com

कोई टिप्पणी नहीं: