गुरुवार, 18 अक्तूबर 2007

नौ दिन के खेल के लिए दांव पर यमुना - अतुल कुमार

क्या आप जानते हैं कि केवल नौ दिनों के राष्ट्रमंडल खेलों के लिए दिल्ली में हजारों साल पुरानी यमुना नदी को बेचा जा रहा है। सभी विशेषज्ञ संस्थाएं व्यक्ति एवं हाईकोर्ट की समिति भी दिल्ली में यमुना के जल अधिग्रहण क्षेत्र में खेलगांव के निर्माण को गलत व गैर कानूनी मानते हैं।दिल्ली में होनेवाले राष्ट्रमंडल खेलों के लिए बजट 1700 करोड़ रुपये था अब बढ़कर 23,000 करोड़ रुपये हो गया है। खेल समिति के साथ हुए करार के मुताबिक यह खेलगांव बाद में दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रों को दिया जाना था पर सरकार अब इसे 2 करोड़ रुपये प्रति फ्लैट के आधार पर बेचेगी। खेलगांव बनने से दिल्ली का भूजल पूरी तरह समाप्त हो जाएगा-दिल्ली सूख जाएगी( यमुना सत्याग्रह और जल बिरादरी द्वारा जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि खेलगांव की प्रस्तावित जगह सीजिमिक जोन-4 में आती है तथा बाढ़ एवं भूकंप संभावित है। इसके बावजूद सरकार हजारों करोड़ रुपये डूबाने और पहले से ही अस्तित्व के संकट से जूझ रही यमुना को नष्ट करने पर आमादा है।दिल्ली सरकार ने मान लिया है कि यमुना में गलत निर्माण हो रहा है। यमुना सत्याग्रहियों का आग्रह सत्य है। यमुना सत्याग्रह की नीव 2000 मे रखी गयी थी। जब हजारों नागरिकों ने यमुना खादर पर अक्षरधाम मंदिर के निर्माण का विरोध किया था। उस समय करीब 250 लोगों को हिरासत में ले लिया गया। उसके बाद तो अनको निर्माण हुए और हो रहे हैं। टाईम्स ग्लोबल विलेज के विरोध में कुछ नागरिक कोर्ट तक गये लेकिन सरकार पर कोई असर नहीं पड़ा। अब 1 अगस्त 2007 से कुछ लोग अक्षरधाम के पीछे सत्याग्रह पर बैठे है। गांधी शांति प्रतिष्ठान में जल बिरादरी और गुडगांव के सहगल फाउंडेशन की ओर से आयोजित सेमिनार में पूर्व पार्षद रघुबीर कपूर ने कहा कि लोगों को सरकार को मजबूर करना चाहिए कि राष्ट्रमंडल खेल दिल्ली में न हो। तभी यमुना और दिल्ली के पर्यावरण की रक्षा हो पाएगी। अभी तो पेड़ काटे जाएंगे, यमुना इलाके में कंक्रीट के जंगल खड़े हो रहे हैं।नदी बेचकर नदी मे सरकारी कब्जे करवाकर अक्षरधाम, खेलगांव, हैलीपैड, मैट्रो डिपो के बाद मॉल होटलों में दस हजार हेक्टेयर यमुना खादर की भूमि को सीमेंट कंक्रीट के जंगल बना देना यमुना के साथ हिंसा है। पूर्व प्रधानमंत्री ने गंगा शुद्धीकरण शुरू किया था लेकिन अब उन्हीं की पार्टी की सरकार मे यमुना मैली होती जा रही है। अगर पर्यावरण के प्रति संवेदनशील हैं तो इस नीति का विरोध करें।

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