नल में पानी नहीं था. नाली में भी नहीं था. पूछने पर पता चला खुदरा पैसों के इन्वेस्टमेंट से नानी के यहां नैनो पहुंच चुका है हालांकि पानी की हाय-हाय वहां भी मची है. नीदरलैण्ड में तो मची ही हुई है. यकीन न हो तो कल के ‘वाटर टाइम्स’ के हेडिंग्स पर एक नज़र मार लीजिए. नाज़रेथ पर भी. सड़कों पर प्रदर्शन हो रहे हैं. कभी भी दंगा भड़क जायें इसकी पूरी संभावना है. क्या हालत हो गई है.. कैसी हो गई है.. मुहावरे तक तेल नहीं पानी लेने जाते दिख रहे हैं! कुछ दिनों में क्या, अभी ही कहने को नहीं रहा कि फलाने (शर्म से या जिस किसी से) पानी-पानी हो गए.. नहीं हो सकेंगे.. क्योंकि फलाने के पानी-पानी होते ही बहुत सारे लोग कंटेनर और घड़ों के साथ बाजू में भरने को मुस्तैद मिलेंगे! बुरी हालत हो गई है.. मीडिया का दो कौड़ीपना हालांकि रोज़ ही ज़ाहिर होता है मगर एक बार फिर इस तथ्य से नाटकीय तौर पर ज़ाहिर हुआ कि शेखर कपूर छै सालों से ‘पानी’ ‘पानी’ बनाने को रो रहे थे.. मीडिया, चाहती तो, इस ख़बर के निहितार्थ और शेखर की सघन अंडरस्टैंडिंग ऑफ हिज़ टाइम्स से दुनिया को नहीं तो कम से कम हिंदुस्तानियों को सचेत कर सकती थी, नहीं की, अब झूट्ठे गाल बजा रही है. सारे चैनलों में सूखी टोंटियों के टोटे चल रहे हैं. जो भी पानी है डिब्रूगढ़ से आ रहा है (पता नहीं डिब्रूगढ़ वालों का कहां से आ रहा है). सभी अतिथियों को सख़्त निर्देश है कि स्टूडियो में एक बार पैर रखने के बाद अपने-अपने जल के लिए स्वयं जिम्मेदार हों (पीने और बहाने- दोनों वाला!)..
नयी बीमारियों ने समाज पर धावा बोला हुआ है. लोग ठीक से पेशाब नहीं कर पा रहे हैं. जो थोड़े खुशकिस्मत हैं, कर पा रहे हैं, वो पानी की जगह दूध और जाने क्या-क्या बहा रहे हैं. एक नया मुहावरा सर्कुलेशन में आया है.. ‘दूध की नदियां बहती थीं’ की जगह ‘कभी यहां पानी बहता था’ कह-कहकर लोग भावुक और सन्न हो रहे हैं! बोकारो में पाण्डे और चतुर्वेदी परिवार के बीच झगड़ा छिड़ जाने की ताज़ा ख़बर है. आरोप है पाण्डों ने अपने लड़के का चतुर्वेदी की लड़की से रिश्ता तय करते हुए स्पष्ट आश्वासन दिया था कि चतुर्वेदी की लड़की जहां जायेगी वहां ढंग से पानी-पानी नहायेगी. लड़की के ससुराल पहुंचने पर चतुर्वेदियों को राज़ खुला कि जलाभाव में उनकी बेटी बारह दिनों से बेनहायी पड़ी है. बेपियी तो पड़ी ही थी!
बीएसई में पानी का भाव आसमान पर है. मॉल्स में भी पानी के स्टॉल्स के आगे लोगों की ग़दर है. ज़मीन में दबे एक नये सोते की ख़बर के साथ रीवां और रतलाम दोनों ही जगहों भारी जनजमाव शुरू हुआ है. हालांकि रिलायंस (पॉवर) कहती है इन सोतों के स्त्रोतों पर उसका निजी अधिकार है. जनहित में सुप्रीम कोर्ट ने भी कुछ ऐसा ही फ़ैसला दिया है.. मगर लोग हैं कि इस फ़ैसले को लात लगाकर रिलायंस के स्थानीय गुर्गों की ज़िंदगी हलक़ान किये हुए हैं. गजब कुंभ मेले-सा भावप्रवण, मार्मिक समां बना हुआ है. चम्मच और कप लेकर कृपया आप भी पानी बटोरने पहुंचिए.. मेरा नहीं, स्वामी मायामछिंदरजी मदनास्वरुपजी का आवाह्न है..
http://azdak.blogspot.com/2008/01/blog-post_9333.html
साभार - अजदक
रविवार, 9 मार्च 2008
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