सोमवार, 26 मई 2008

ऐतिहासिक नरहरियानंद तालाब में गंदगी ही गंदगी

ऐतिहासिक नरहरियानंद तालाब की सुधि लेने के लिए कोई भी जनप्रतिनिधि सामने नहीं आ रहा है। विगत वर्ष में क्षेत्रवासियों के सहयोग से बनी नरहरियानंद जीर्णोद्धार समिति एवं समाधान संस्था ने अपने संयुक्त प्रयासों से लाखों रुपए खर्च कर खुदाई एवं साफ-सफाई का काम करवाया, जो मात्र दिखावे के अलावा कुछ नहीं रहा। पवित्र तालाब की आस्था को देखते हुए क्षेत्रवासियों ने शासन एवं जनप्रतिनिधियों से अपेक्षा की है कि वह तालाब के रखरखाव एवं सफाई के लिए ईमानदारी से प्रयास करें।

साईंखेडा, म. प्र.। तालाब किनारे हो रहे अतिक्रमण के कारण तालाब अपना वास्तविक स्वरूप खोता जा रहा है। नगर के बीचोंबीच स्थित यह तालाब लोगों की आस्था का भी केंद्र है। प्रत्येक त्योहार के अवसर पर हजारों लोग पूजन-अर्चन कर अपनी मनोकामना पूर्ण करते हैं। परंतु आज यह तालाब उपेक्षा का शिकार बना हुआ है। तालाब के किनारे जो बहुमंजिला इमारतें बन गई हैं, उनमें निवासरत लोग अपने घरों से निकली गंदगी और कचरा इसी तालाब में बहा रहे हैं, जिससे इसकी पवित्रता नष्ट हो रही है।
तालाब की ऐतिहासिकता के बारे में बताते हुए गांव के वयोवृद्ध समाजसेवी होतीलाल कठल कहते हैं कि वर्षों पहले इस क्षेत्र में अकाल पडा हुआ था। लोग भूख से मर रहे थे, तब साईंखेडा में महान योगीराज संत हरियानंद का आगमन हुआ। दूधी नदी के किनार उन्होंने अपनी कुटिया बनाई। संत के आगमन से उनके दर्शनार्थ क्षेत्र के हजारों लोग पहुंचे और उन्होंने अकाल व भुखमरी से निजात दिलाने का अनुरोध किया। संत ने उनके दुखों से द्रवित होकर अपने शिष्य को पास बुला कर नगर के बीचों-बीच तालाब निर्माण करने का आदेश दिया और कहा कि मैं तीर्थ यात्रा पर जा रहा ह। उन्होंने शिष्य को एक कोठी दी और कहा कि इसके नीचे वाले हिस्से को खोलना, उसमें स्वर्ण मुद्राएं एवं अनाज निकलेगा, जो खुदाई करने वाले मजदूरों को दे देना ताकि उनका जीवनयापन हो सके।
इस प्रकार तालाब की खुदाई का काम अनवरत चलता रहा। एक दिन शिष्य के मन में लालच आ गया और उसने ऊपर का ढक्कन खोल कर सभी स्वर्ण मुद्राएं निकालनी चाहीं, पर उसमें कुछ नहीं था। पैसे के अभाव में काम बंद करना पडा। कुछ समय बाद संत परिक्रमा कर वापस लौटे। वह इस स्थिति को पहले ही भांप गए थे। संत ने कहा कि अब मुझे जल समाधि लेना पडेगी। संत की बात सुन कर लोग अचंभित रह गए, क्योंकि तालाब में एक बूंद भी पानी नहीं था। निश्चित दिन हजारों लोगों की उपस्थिति में संत द्वारा अपने परम शिष्य के साथ तालाब के बीचोंबीच पहुंचकर गंगा जल से भूमि का पूजन-अर्चन किया गया और उन्होंने उपस्थित जनसमुदाय से तालाब से बाहर निकलने को कहते हुए कहा कि तुम लोग जो भी मनोकामना यहां पर मांगोगे, वह पूर्ण होगी। लोगों के बाहर निकलते ही तालाब में सैकडों झरने फूट पडे। तालाब के भरते ही संत और शिष्य ने जल समाधि ले ली। श्रद्धालुओं ने संत की याद में तालाब के बीचोंबीच गुरु और शिष्य समाधि बना दी। बाद में वहीं पर बरगद का पेड उग आया। वही संत का प्रतीक माना जाता है।
ऐसे ऐतिहासिक तालाब की सुधि लेने के लिए कोई भी जनप्रतिनिधि सामने नहीं आए। तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने अपने प्रवास के दौरान यहां आकर तालाब के जीर्णोद्धार के लिए 25 करोड रुपए के पैकेज की घोषणा की थी, लेकिन वह भी कोरी घोषणा ही निकली। विगत वर्ष में क्षेत्रवासियों के सहयोग से बनी नरहरियानंद जीर्णोद्धार समिति एवं समाधान संस्था ने अपने संयुक्त प्रयासों से लाखों रुपए खर्च कर खुदाई एवं साफ-सफाई का काम करवाया, जो मात्र दिखावे के अलावा कुछ नहीं रहा। पवित्र तालाब की आस्था को देखते हुए क्षेत्रवासियों ने शासन एवं जनप्रतिनिधियों से अपेक्षा की है कि वह तालाब के रखरखाव एवं सफाई के लिए ईमानदारी से प्रयास करें।
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