रविवार, 8 जून 2008

भागीरथी गंगा जी के संरक्षित हितार्थ ''आमरण अनशन संकल्प'' के सन्दर्भ में

प्रिय......


भारतीय संस्कृति एवं चिन्तन में भागीरथी गंगा जी और और उनकी संसार में अद्वितीय पाप-विमोचनी, स्वास्थ्यवर्ध्दिनी पवित्रता में आस्था से आप भली-भांति परिचित हैं। पिछले कुछ र्वों में जल-विद्युत परियोजनाओं द्वारा अन्य नदियों की भांति ही, भागीरथी गंगा जी के प्रवाह की अविरलता को भंग कर, इस आस्था-स्रोत को छिन्न-भिन्न किया जा रहा है। अभी भी मनेरी से नीचे भागीरथी गंगा जी की धीरा लम्बी दूरी और लम्बे समय तक जल-विहीन रहती है। आगे चलकर तो शायद पूरी गंगा जी की यही नियित हो जाये। पर्यावरण विज्ञान का एक गम्भीर छात्र और एक आस्थावान हिन्दू होने के नाते यह विचार भी मेरे लिए असहनीय है। हम तो गंगा जी को माँ मानते हैं- क्या माँ की हत्या, उसका जल-विहीन, छिन्न-भिन्न किया जाना चुपचाप देखते रहें? मैं महीनों के आत्ममंथन के बाद इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि कम से कम उद्गम-स्थल से उत्तरकाशी नगरी तक तो भागीरथी की धारा को आस्थावान हिन्दुओं और भारतीय संस्कृति के लिए अविरल, निर्बाध छोड़ दिया जाना चाहिए और मेरी आत्मा की आवाज है कि इस भाग के साथ किसी भी मानवीय छेड़छाड़ का मुझे यथाशक्ति विरोध करना चाहिए।

वर्तमान भारतीय सरकारों और समाज में भौतिक-आर्थिक विकास और बिजली उत्पादन पर इतना बल है, इतनी ललक है कि मुझ सरीखे क्षुद्र व्यक्ति के विरोद्द का अर्थ ही क्या है, नक्कारखाने में तूती की आवाज भी कौन सुनेगा ? पर हमारी संस्कृति में तो सदा से आत्म बल और तपोबल का बड़ा महत्व रहा है और इसके लिए तपना पड़ता है, बलि देनी पड़ती है। वह आस्था ही क्या जिसके लिए अन्य सभी कुछ प्राण का भी उत्सर्ग न किए जा सकें। मैं तो बचपन में स्कूल की दैनिक प्रार्थना में ''जिस देश-जाति में जन्म लिया, बलिदान उसी पर हो जाये'' और झण्डा-गान मैं ''देश धर्म पर बलि-बलि जायें'' गाते हुए पला-बढ़ा हूँ। क्या आज भारतीय संस्कृति, हिन्दू-आस्था मुझे बलि के लिए नहीं पुकार रही है ? सोच-विचार कर मैने उत्तरकाशी से ऊपर की भागीरथी गंगा की धारा के सा छेंड़छाड़ के विरोद्ध में '' आमरण अनशन '' करने का निश्चय किया है।

भगवान राम की तप:स्थली चित्रकूट धाम में उनके पावन जन्म दिन रामनवमी, 14 अप्रैल 2008 को मैं संकल्प करता हूँ कि कोई अनहोनी ही न घट जाये तो मैं उत्तरकाशी तक भागीरथी गंगा की धारा के अविरल-निर्बाध रखे जाने के हित में गंगा दशहरा 13 जून 2008 से '' आमरण अनशन '' करूंगा। प्रभु राम मुझे अपने संकल्प पर दृढ़ रहने की शक्ति दें।


आप मुझसे स्नेह रखते हैं- उसी स्नेह का वास्ता देकर प्रार्थना करता हूँ कि अपने संकल्प से डिगाने का प्रयास कृपया न करें। यदि मेरा यह प्रयास आपको नि:स्वार्थ, उचित और धर्मानुकूल लगे तो इसके उद्देश्यों की अन्तोगत्वा सफलता के लिए प्रभु से प्रार्थना करें।


मैं 15 मई 2008 से अद्दिकांय समय उत्तरकाशी में रहूँगा, उपयुक्त ठिकाने की खोज कर रहा हूँ। पता - M.C Mehta, Env. Foundation ;k Peoples’ Science Institute (Tel : 0135-2763649) से ज्ञात हो सकेगा।
हार्दिक स्नेह और युभकामनाओं सहित


आपका अपना आत्मीय

(गुरूदास अग्रवाल)

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