गुरुवार, 26 जून 2008

बागपत में भी बन रहे धरती फटने के हालात

बागपत। भूजल स्तर गिरावट में यूपी में बागपत नम्बर वन पर पहुंच चुका है। जिले में हर साल भूजल रिकार्ड 70 सेमी गिर रहा है, पर न तो प्रशासन चिंतित है और न लोग ही भूजल के अतिदोहन से बाज आ रहे हैं। जिस तेजी से यहां पर जलस्तर गिर रहा है, उससे कभी भी धरती फटने जैसे हालात बन सकते हैं।

ध्यान रहे कि यूपी में हमीरपुर, कानपुर देहात, इलाहाबाद तथा उन्नाव आदि में जमीन फटने की घटनाएं हो चुकी हैं। भूगर्भ जल शास्त्री मान चुके हैं कि वहां धरती फटने की वजह भूजल का अति दोहन है। दरअसल निरन्तर पानी निकाले जाने से धरती की सतहों के बीच खाली जगह बन गई। तब ऐसी घटनाएं घटीं। फिर तो बागपत में भी कभी भी धरती फट सकती है, क्योंकि यहां तो भूजल का अतिदोहन जारी है। 1.2 लाख हेक्टेयर भूमि पर खेती होती है और नहरों में पानी न होने से शत-प्रतिशत सिंचाई भूगर्भ जल से की जाती है। सत्तर फीसदी रकबा पर गन्ने की पैदावार ली जाती है। गन्ना की फसल को सबसे ज्यादा सिंचाई चाहिए। बिजली व इंजन चलित करीब चालीस हजार नलकूपों को दिन रात धरती के पेट से पानी निकालते देखा जा सकता है। यूं भी घर-घर सब-मर्सिबल पम्पों से भूगर्भ जल का अतिदोहन जारी है। चौदह हजार इंडिया मार्का हैण्डपम्प तथा तीस हजार शैलो हैण्डपम्पों से भी भूगर्भ जल का दोहन होता हैं। यह वजह है कि भूगर्भ जल गिरावट के मामले में यूपी में बागपत नम्बर वन पर पहुंच चुका है।

भूगर्भ जल विभाग उत्तर प्रदेश ने 10 जून को स्मारिका जारी की है। उसका अवलोकन करने पर साफ हो जाता है कि जनपद बागपत में रिकार्ड 70 सेमी भूगर्भ जल की गिरावट प्रति वर्ष हो रही है, जो प्रदेश में सर्वाधिक है। बागपत के छह में से बिनौली व पिलाना अति दोहित तथा छपरौली व खेकड़ा क्रिटिकल श्रेणी में काफी पहले आ चुके हैं। विस्फोटक हालात हैं। हालांकि अब लोगों को दुष्परिणाम भी भुगतना पड़ रहा है। गत पांच साल में 10 हजार से ज्यादा नलकूप तथा 1000 इंडिया मार्का हैण्डपम्प और 70 हजार शैलो हैण्डपम्प ठप हो चुके हैं। भूगर्भ जल स्तर 165 फुट से भी ज्यादा गहरे तक पहुंचने से बाकी नलकूपों से भी कम पानी निकलता है। चौगामा समेत कई क्षेत्रों में तो हालात यह है कि यदि एक नलकूप पहले चालू हो जाये तो फिर दूसरे नलकूपों से पानी ही नहीं निकलता। अगर ऐसे में बागपत में भी धरती फटने की घटना घट जाये तो फिर आश्चर्य न होगा। सोचनीय बात यह भी है कि भूगर्भ जल के अतिदोहन से न तो लोग ही बच रहे हैं और न ही वाटर रिचार्ज की योजनाएं परवान चढ़ती नजर आ रही हैं। आदर्श जलाशय योजना हो चाहे सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना रही हो या कोई और तालाबों की खुदाई कागजों तक सिमट कर रह गई है। जो तालाब खुदें भी हैं उनमें से ज्यादातर सूखे पड़े हैं। 1,074 तालाब तो अभी खुदने के इंतजार में हैं। फिर कैसे वाटर रिचार्ज होगा? प्रभारी सीडीओ माखन लाल गुप्ता भी मानते हैं कि भूजल गिरावट में बागपत का प्रदेश में पहला स्थान है। पर राहत की बात यह है कि भूजल विकास के मामले भी बागपत प्रदेश में दूसरे स्थान पर है। यहां भूजल विकास दर विकास की दर 98.23 प्रतिशत है। इस मामले में पहला स्थान जनपद बदायूं का है जहां भूजल विकास दर 100.85 प्रतिशत है। उनका यह भी कहना है कि राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के धन से भी वाटर रिचार्ज का कार्य कराया जायेगा।

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