बुधवार, 24 सितंबर 2008

शिवनाथ के बारे मे…..

कुछ वर्ष पहले शिवनाथ नदी बहुत चर्चा में था। चर्चा मे तब आया जब एक प्रायवेट कंस्ट्रक्शन कम्पनी (रेडियस वाटर कम्पनी), जिनके मालिक राजनान्दगाँव के कैलाश सोनी है को सरकार ने नदी का 23.6 कि. मी. का क्षेत्र 22 वर्ष के लिये लीज़ पर दे दिया है और नदी के पानी के उपयोग को लेकर रेडियस वाटर कम्पनी के कर्मचारियों और बान्ध के किनारे के मोहलाई ग़ाँव के लोगो के बीच झड़प हुई। गाँव वालो के मुताबिक पहले तो रेडियस वाटर कम्पनी और दुर्ग कलेक्टरेट की ओर से पानी का उपयोग नही करने के लिये नोटिस मिला और बाद मे कंपनी के कर्मचारी नदी से लगे पम्प को निकालने गाँव पहुचे। मछुआरों के जाल भी काटे जाने लगे। ग्रामिणो के आक्रोशित होने और बाद मे स्थानीय संगठनों के सहयोग और हस्तक्षेप होने के बाद यह मसला पूरी तरह से शांत हो गया।

वर्तमान मे बान्ध के ऊपर की ओर बने गाँव महमरा और मोहलई के लोग नदी के पानी का भरपूर उपयोग कर रहे है। रेडियस वाटर कम्पनी भी किसी को पानी लेने से मना नही कर रही है। किसी को कोई तकलीफ नही है और किसी प्रकार का कोई आन्दोलन नही हो रहा है। लेकिन कल को यह सब फिर हो भी सकता है इसका डर तो अभी भी गांव वालो को है।

छत्तीसगढ़ अपने परम्परागत जल संग्रहण के लिये भी जाना जाता है जैसे छोटे-बड़े तालाब, डबरी, कुआं आदि। यहाँ के गावों में बहुत से छोटे बड़े तालाब देखे जा सकते है यहाँ तक कि कई गाँव मे तो 10 से 15 तालाब भी है। जिसका उपयोग खेती के लिये, पशु के लिये, नहाने धोने के लिये और मछली पालन के लिये किया जाता है। लेकिन शिवनाथ नदी के किनारे के इन गावों में एक या दो ही तालाब है। कहीं-कहीं कुएँ भी है। गाँव वाले पूरी तरह से नदी पर निर्भर है। इसके अलावा यहाँ के आसपास के लगभग हर गाँव मे 60 से ज्यादा बड़े एवं छोटे मोटर पम्प और नलकूप है, खेती के लिये और पीने के लिये। बान्ध बन जाने से महमरा और मोहलाई जैसे गाँव के लोग इस गर्मी मे भी भरपूर खेती किसानी कर रहे है और दो फसल ले रहे है, यही नही नदी के किनारे किनारे निजी स्तर पर भारी मात्रा मे बड़े एवं छोटॆ पैमाने पर तरबूज, खरबूज, पपीता, साग-भाजी की भी पैदावारी हो रही है।

लेकिन नीचे के गाँव की हालत ऎसी नही है मलौद और बेलौदी जैसे गाँव मे कुछ वर्ष पूर्व जहाँ बड़ी मात्रा मे अमरूद के बगीचे थे वे सब अब धीरे धीरे सुख रहे है। बेलौदी के सरपंच पति ने बतलाया कि यह अमरूद गाँव वालो के लिये आय का एक बहुत बड़ा स्त्रोत था। यहाँ के अमरूद आस पास के राज्यो मे भी जाते थे। उन्होने इस बात से इन्कार नही किया कि जल स्तर में आई गिरावट इसका एक प्रमुख कारण हो सकता है।

ऎसे ही नदी के किनारे के एक गाँव कोटनी में एक रपटा का निर्माण हो रहा है लाखों की लागत से जो नगपुरा को सीधे कोटनी से जोड़ेगी और फिर आगे दुर्ग तक जायेगी। यहाँ मेरी मुलाकात सिविल इंजिनीयर से हुई जो पंचायत मे बैठे हिसाब किताब कर रहे थे। शिवनाथ नदी पर उनका कहना था “पानी को बांध देने से गाँव को फायदा ही हुआ है। पहले तो पानी आगे बह जाता था लेकिन अब यहाँ आस पास के किसान बढ़िया से खेती कर रहे है। गर्मी मे तो नदी वैसे भी सूख जाती थी। सरकार की योजना है की जगह जगह चेक डेम बने, तो यह तो अच्छी ही बात है।“ लेकिन उनके पास इस बात का उत्तर नही था कि इन गावों मे तो ठीक है लेकिन अगर इसी तरह कुछ खास जगहो पर ही पानी का पूरा दोहन होता रहा तो उन गावों का क्या होगा जो नीचे की ओर है। साथ ही इस बात पर भी असमंजस्य की स्थिती बनी हुई है कि सरकार तो उस 23.5 कि. मी. के अन्दर के हिस्सों पर भी ऎनीकेट और रपटा बना रही जो लीज़ पर दी जा चुकी है। कल को अगर कम्पनी और सरकार के बीच तनाव की स्थिती आती है तब क्या होगा?

नदी के किनारे छोटे बड़े बहुत से कई ईट भट्टे भी है। कोटनी, पीपरछेड़ी गाँव के आस पास ईट भट्टे है। इनके कारण बड़ी तेजी के साथ नदी किनारे मिट्टी का कटाव हो रहा है। निर्माण क्षेत्र के लिये रेत का भी उत्खनन बड़ी मात्रा मे हो रहा है। इससे काफी बड़े हिस्से मे नदी के दोनो तरफ समतल होना शुरू हो गया है। खेती-बाड़ी के लिये भी किसान, नदी के दोनो तरफ समतल कर रहे है। इससे पंचायत, अधिकारी और स्थायी नेताओं को आंशिक लाभ जरूर हो रहा होगा लेकिन आने वाले समय में नदी का क्या होगा इसकी चिंता शायद किसी को नही है।

साथ ही रसमड़ा मे उद्द्योगपतियों द्वारा नदी के आस पास के पूरे खाली सरकारी और खेती जमीन को खरीद लेना है। इससे रसमड़ा के लोगो का नदी के पानी का उपयोग करना तो दूर, नदी तक पहुँचा भी नही जा सकता। पूरे जगह को घेर लिया गया है। रसमड़ा के ग्रामीण खेत के बिक जाने से खेती भी नही कर पा रहे है, पर्याप्त उद्योग नही लगने से रोजगार भी नही मिल रहा है और स्पंज आयरन उद्योग के कारण प्रदुषण भी स्थानीय लोगो के लिये एक बहुत बड़ी समस्या है।

इन गाँवों मे केवट, निषाद, ढीमर आदि मछुआरे जाति के लोग भी बहुत है और कुछ परिवार तो पूरी तरह से आजिवीका के लिए नदी पर ही निर्भर है। लेकिन अब धीरे धीरे नदी के पानी मे कमी आने और पर्याप्त मछली नही मिलने के कारण अब ये लोग मेहनत मजदूरी के लिये गाँव और ग़ाँव के बाहर अन्य शहरों में जाने लगे है।

नगपुरा जाते समय भरी दोपहरी मे मेरी मुलाकात नगपुरा के एक मछुआरे विष्णु ढीमर (आयु करीब 60 वर्ष) से हुई जो अपने चौथे और सबसे छोटे बेटे (आयु 13-14 वर्ष) के साथ बहुत दूर किसी पोखर
से मछली मार कर आ रहे थे। गर्मी के दिनों मे नदी मे पानी नही होने के कारण उन्हे मछली पकड़ने के लिये दूर दूर जाना पड़ता है। वे सुबह सुबह निकले थे और दोपहर एक बजे के आस पास घर वापस लौट रहे थे। आज किस्मत से उन्हे केवल एक भुंड़ा मछली ही मिल पाई। वे याद करते है कि वर्षो पहले शिवनाथ मे बहुत पानी हुआ करता था और बहुत प्रकार की मछलियाँ मिलती भी थी लेकिन अब तो “जलगा”, “सवार” जैसी मछलियाँ नही मिलती, विलुप्त हो गयी है। इनके परिवार मे इनके अलावा और कोई भी मछ्ली नही पकड़ता। घर के बाकी सदस्य (महिलाएँ भी) मेहनत मजदूरी करने है।

दुसरी बार फिर पीपरछेड़ी के पास फिर इसी मछुआरे से मुलाकात हुई इस बार वहाँ उनके साथ सात-आठ मछुआरे और थे और सभी नगपुरा के थे। एक मछुआरे को वहाँ एक कछुआ भी मिला।

इस नदी को लीज़ मे दिये जाने की चिंता तो सभी को है लेकिन इसकी चिंता करने वाले तमाम लोगो और यहाँ तक कि पर्यावरणविदों से यदि यह भी पूछा जाये कि कितने और किस प्रजाति की मछलियाँ और अन्य जलचर प्राणी इस नदी मे है और कितनी विलुप्त हो गयी है तो शायद ही संतोषजनक उत्तर मिलें।

स्थिती आज शायद गम्भीर नही है लेकिन अगर यह लगातार चलता रहा तो आने वाले समय में जरूर पानी की बहुत बड़ी समस्या उत्पन्न हो जायेगी। आश्चर्य की बात है कि शिवनाथ नदी जैसा हाल छत्तीसगढ़ के बहुत सी नदियों का है लेकिन उस पर चिंता और बात नही हो रही है। शायद लाभ की जुंगाईश न हो।

शिवनाथ नदी देश का पहला पानी के निजीकरण का और हर प्रकार के दोहन का उदाहरण है इसके लिये कैलाश सोनी से लेकर ग्रामीणों और सम्बन्धित तमाम फिक्रमन्द लोगो को इस पर गौरांन्वित होने कि जरूरत नही है और समय समय पर इस मुद्दे को जिन्दा रखना शायद उतना जरूरी नही है, जितना कि शिवनाथ नदी को मरने से बचाने की है।

तेजेन्द्र ताम्रकार

साभार - जोहार

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बुधवार, 27 अगस्त 2008

दूषित पानी से बढ रहीं बीमारियां

मध्य प्रदेश, छतरपुर । जिला चिकित्सालय का बच्चा वार्ड इन दिनों बाल रोगियों से भरा हुआ है। रोगियों की संख्या में तेजी से बढोतरी हो रही है। इन रोगों के पीछे प्रदूषित पानी मुख्य वजह है। गंदा पानी पीकर बच्चे कम प्रतिरोधक क्षमता होने के कारण रोगों की चपेट में आसानी से आ जाते है।
जिला चिकित्सालय की ओपीडी में इन दिनों आने वाले कुल मरीजों में से 4॰ फीसदी संख्या बाल रोगियों की होती है। ये बाल रोगी उल्टी, दस्त, पेट दर्द के साथ पीलिया जैसी घातक बीमारियों के शिकार निकलते है। जिले के ग्रामीण कस्बाई क्षेत्रों के अस्पतालों में आने वाले मरीजों में से 6॰ फीसदी मरीज बाल रोगी होते हैं।
क्यों होते हैं रोगः बारिश के साथ जमीन में कई अलग-अलग झिरें पानी लेकर जल स्रोतों तक पहुंचती हैं। इनमें कई बार घुली हुई मिट्टी के साथ हानिकारण विषाणु भी पानी में सक्रिय रहते हैं। इस पानी को जब बिना शुद्धिकरण किए बच्चे पीते हैं तो उनके शरीर में विषाणु प्रवेश करके उन्हें रोग ग्रसित बना देते हैं। इन विषाणुओं के कारण बच्चे सामान्य रोगों के साथ कई बार डायरिया और पीलिया की चपेट में आ जाते हैं।
क्या कहते हैं डाक्टरः जिला चिकित्सालय के सिविल सर्जन डॉ. हृदेश खरे ने बताया कि बारिश में बच्चे सबसे अधिक रोगग्रस्त होते हैं। कई बार बारिश के पानी में अधिक घूमने या नहाने से वे सर्दी-जुखाम और बुखार के शिकार हो जाते हैं। प्रदूषित पानी पीने से उन्हें पेट संबंधी रोग हो जाते हैं। उन्होंने बताया कि बारिश के मौसम में चाट-पकौडी, पूडी, पराठे, आइस्क्रीम और मिठाई खिलाने से परहेज
करना चाहिए। डॉ. खरे का कहना है कि इन सभी चीजों के सेवन से भी रोग बढते है। उनका कहना है कि अधिकांश बच्चों में पेट दर्द, उल्टी- दस्त की शिकायत मिल रही है। कई बच्चे प्रदूषित पानी पीकर बीमार होने के बाद उन्हें समय से उचित इलाज न मिलने से पीलिया जैसे रोगों की चपेट में आ रहे हैं। इस बारे में पालकों को विशेष रूप से सावधानियां बरतना चाहिए।

दूषित पानी की मछली बढ़ाए कैंसर

न्यूयार्क, 7 नवंबर (आईएएनएस)। प्रदूषित पानी से पकड़ी गई मछली कैंसर का कारण बन सकती है। 'युनिवर्सिटी आफ पिट्सबर्ग' द्वारा किए गए एक अध्ययन में अनुसंधानकर्ताओं ने पाया है कि गंदे नालों और कारखानों के प्रदूषित पानी में पलने वाली 'कैटफिश' जैसी मछलियों में हानिकारक तत्व होते हैं। प्रयोगों के दौरान इन तत्वों के कारण स्तन कैंसर की कोशिकाओं का तेजी से विकास हुआ।

अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार मछलियां दूषित पानी में मौजूद 'ओएस्ट्रोजेन' और 'क्जेनो-ओएस्ट्रोजेन' जैसे रयासनों को शरीर में सोख लेती हैं जिनसे महिलाओं में स्तन कैंसर का विकास हो सकता है।

अनुसंधानकर्ता कोनरैड डी. वोल्ज के अनुसार, ''इस अध्ययन के परिणाम सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिहाज से महत्वपूर्ण हैं। हमारे जल स्रोत भी उस प्रदूषण से प्रभावित होते हैं जिनमें यह मछलियां पलती हैं।''

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस

बिहार के भूजल में संखिया की मात्रा खतरनाक

पटना (एजेंसी)। बिहार के भूजल में पाए जाने वाले संखिया के अनुपात को खतरनाक स्तर पर माना जा रहा है। प्रदेश के 38 में से 12 जिलों में भूजल प्रदूषित है।
आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक संखिया मिले पानी का सेवन करने से पिछले कुछ वर्षों में लोगों को सफेद दाग जैसी त्वचा संबंधी बीमारियां हो रही हैं। केंद्रीय भूजल बोर्ड के वरिष्ठ वैज्ञानिक केके सिंह ने कहा कि गंगा नदी के पठार की मिट्टी की जांच में संखिया की एकाग्रता उच्च स्तर पर पाई गई। इससे भूजल प्रदूषित हो रहा है। हाल ही में 12 प्रभावित जिलों में हुए प्राथमिक सर्वेक्षण में यह खुलासा हुआ कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की सिफारिश के आधार पर एक अरब में 10 हिस्से (पीपीबी) के तय मानक से भी ज्यादा संखिया पानी में पाया गया। प्रदेश के 316 ग्रामों के 20 हजार नलकूपों में पीपीबी 10 से भी ज्यादा पाया गया। वहीं 235 जिलों के 36 ग्रामों में पीपीबी 50 से भी ज्यादा था। संखिया से प्रभावित जिले पटना, भागलपुर, कटिहार, खगड़िया, बेगुसराय, मुंगेर, लखीसराय, समस्तीपुर, वैशाली, सरन, भोजपुर और बक्सर हैं। यूनिसेफ के मुताबिक प्रदेश की राजधानी के उपनगरीय इलाकों में स्थित नलकूपों के प्रदूषित पानी की वजह से करीब पांच लाख की जनसंख्या संखिया के रूप में धीमा जहर पी रही है। अध्ययन के मुताबिक पटना में भूजल संखिया रहित है। संखिया और प्रदूषित पानी पटना के उपनगरीय क्षेत्र दानापुर और फाथुआ में पाया गया है। विभाग के प्रमुख एके घोष ने भोजपुर, भागलपुर, पटना और वैशाली जिले से लिए गए 28 हजार नमूनों का विश्लेषण करने के बाद कहा कि भोजपुर के पांडे तोला के पानी में संखिया की मौजूदगी सबसे ज्यादा पाई गई।

सकरी नदी में प्रदूषण रोकने करोड़ रूपए की परियोजना

छत्तीसगढ़ राज्य शासन द्वारा कबीरधाम जिले की सकरी नदी को प्रदूषित होने से बचाने के लिए चार करोड़ 88 लाख रूपए की परियोजना को मंजूरी दी गई है। लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग द्वारा राज्य में नदियों को प्रदूषण से बचाने के लिए पहली बार इस प्रकार की परियोजना हाथ में ली जा रही है। इस योजना के तहत कवर्धा शहर के गंदे निस्तारी पानी को साफ करके सकरी नदी में बहाया जाएगा। साथ ही गंदे पानी का शुध्दीकरण करने के लिए फिल्टर प्लांट एवं शुध्दीकरण प्लांट भी लगाया जाएगा। लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के अधिकारियों ने बताया कि कवर्धा शहर के गंदे पानी और कचरे का शहर में बहने वाले जारा नाला में मिलने से नाले का पानी प्रदूषित हो जाता है। यह नाला सकरी नदी में मिलता है। नाले के प्रदूषित पानी के कारण सकरी नदी में भी प्रदूषण की समस्या देखी जा रही है। इसे ध्यान में रखकर मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के निर्देश पर नदी को प्रदूषण से बचाने के लिए इस परियोजना की मंजूरी दी गई है। परियोजना के तहत नाले के प्रदूषित पानी सहित शहर की नालियों में बहने वाले गंदे पानी को एक स्थान पर एकत्रित कर उसे शुध्द किया जाएगा। इसके लिए जल शुध्दिकरण संयंत्र की स्थापना की जाएगी। शुध्दिकरण के बाद साफ पानी को विभिन्न प्रयोजनों के लिए इस्तेमाल किया जा सकेगा। शुध्द जल की आपूर्ति से लोगों को जल जनित विभिन्न बीमारियों से बचाव की दृष्टि से भी काफी राहत मिलेगी।

प्रकृति का दुश्मन काला पानी.... सचिन शर्मा

प्रदूषित पानी बना पर्यावरण के लिए खतरा, खेत बन रहे बंजर, कुँए-नलकूप भी हो रहे प्रभावितसचिन शर्मा
भीलवाड़ा। प्रदेश के लिए अमृत समान महत्वपूर्ण माना जाने वाला पानी भीलवाड़ा जिले में प्रदूषण की समस्या का सबसे ज्यादा सामना कर रहा है। वस्त्र नगरी में चल रहे १९ प्रोसेस हाउस से निकलने वाला यह पानी अपनी प्रवृति इतनी अधिक बदल चुका है कि इसका नाम ही काला पानी पड़ गया है। अपनी काली करतूतों के कारण इस पानी से जिले के तीन दर्जन से अधिक गांवों के ५०० से ज्यादा कुँए खराब हो चुके हैं। हजारों बीघा जमीन भी उजाड़ हो गई है। सरकार और जिला प्रशासन ने जल्दी ही प्रदूषण को रोकने का इंतजाम नहीं किया तो यह भीलवाड़ा के जनजीवन के लिए निश्चित ही बहुत घातक सिद्ध होगा।
पाली, बिठूजा, बालोतरा, जसोल और जयपुर के सांगानेर की तर्ज पर भीलवाड़ा में भी प्रोसेस हाउस प्रकृति के लिए काल बनने का काम कर रहे हैं। प्रतिमाह करीब पाँच करोड़ मीटर कपड़ा तैयार करने वाले ये प्रोसेस हाउस जिन रसायनों का उपयोग करते हैं उनसे ना सिर्फ स्थानीय जलस्त्रोत बल्कि बनास और कोठारी नदियों में भी प्रदूषण की भीषण समस्या उत्पन्न हो गई है। जिले के कुँओं में सीपेज के माध्यम से पहुँचने वाला यह पानी कुँओं को झाग से भर देता है। फिर ना तो इसे पीने के उपयोग में लिया जा सकता है और ना खेती करने के। जिन किसानों ने इससे खेती करने की कोशिश की उनकी जमीनें बंजर हो गईं।
राजस्थान उच्च न्यायालय इस आशय के आदेश दे चुका है कि प्रोसेस हाउस जीरो एमिशन के निर्देश को नहीं अपनाते हैं तो जिला प्रशासन उन्हें बंद कर सकता है, लेकिन भीलवाड़ा की तरक्की और उद्योगपतियों के दबाव के कारण जिला प्रशासन ना तो जीरो एमिशन का नियम लागू कर पा रहा है और ना इन प्रोसेस हाउसेज को बंद करवा पा रहा है।

ये बने हैं जान के लिए जोखिम
काले पानी को डिसॉल्व्ड सॉलिड, सल्फेट, क्लोराइड, फ्लोराइड, नाइट्रोजन, हार्डनेस और कैल्शियम की अधिक मात्रा मिलकर घातक बनाती है। इसको किसी भी प्रकार से इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। जानवर इसको पीकर मौत के मुँह में भी जा सकता है।

यह है जीरो एमिशन का नियम?
भीलवाड़ा के प्रोसेस हाउसेज से निकलने वाले पानी को जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग द्वारा पूर्व में ही खतरनाक घोषित किया जा चुका है, क्योंकि यह वॉटर एक्ट के मापदण्डों पर खरा नहीं माना गया था। तब यहाँ राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से जीरो एमिशन का नियम लागू किया गया जिसके तहत प्रोसेस हाउस प्रदूषित पानी को निर्धारित तकनीकों से प्रदूषण मुक्त करने के बाद अपने ही काम में लें और उसे बाहर बिल्कुल नहीं छोड़ें। लेकिन इस महत्वपूर्ण नियम की ही यहाँ सबसे अधिक अनदेखी होती है और प्रोसेस हाउसेज से यह काला पानी रात के अंधेरे में धीरे-धीरे बाहर छोड़ दिया जाता है।

इन गांवों पर टूट रहा है कहर
जिले के जिन तीन दर्जन गांवों के कुँओं और जमीनों पर काले पानी का सर्वाधिक असर हुआ है उनमें मण्डफिया, दर्री, झोंपड़िया, स्वरूपगंज, कल्याणपुरा, चोयलों का खेड़ा, कुम्हारिया, पिपली, मंगरोप, गुवारड़ी, आंमा, ठगों का खेड़ा, आटूण, किशनावतों की खेड़ी, बीलिया, काणोली, सूड़ों का खेड़ा, पातलियास, आरजिया, माण्डल, पालड़ी, सांगानेर, सुवाणा आदि प्रमुख हैं।

- प्रोसेस हाउस की निगरानी मुख्यतः राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड करता है। उसकी सिफारिश पर ही जिला प्रशासन कार्रवाई करता है। बोर्ड अगर हमसे मदद माँगेगा तो हम तुरंत कार्रवाई करेंगे।
- अजिताभ शर्मा, जिला कलेक्टर, भीलवाड़ा

- काले पानी पर काबू पाने के लिए हमने टास्क फोर्स बना रखी है। हम प्रत्येक प्रोसेस हाउस का नियमित निरीक्षण करते हैं। जीरो एमिशन नहीं पाए जाने पर उस पर कार्रवाई होती है, नियमों की पालना के लिए नोटिस दिया जाता है। यह कार्रवाई जयपुर मुख्यालय से होती है।
- वीरसिंह, क्षेत्रीय अधिकारी, राजस्थान प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड

हमने काले पानी की रोकथाम को लेकर न्यायालय में जनहित याचिका लगा रखी है। इस मामले को लेकर आंदोलन भी छेड़ा गया था, लेकिन प्रशासन ना तो इन प्रोसेस हाउस को बंद करवा पाया और ना किसी अन्य जगह स्थानांतरित करवा पाया। प्रोसेस हाउस कपड़ा साफ करने के लिए आधुनिक तकनीक का उपयोग करें तो यह समस्या आधी सुलझ सकती है।
- बाबूलाल जाजू, प्रदेशाध्यक्ष, पीपुल फॉर एनिमल्स

२८ जनवरी, २००६ को लिखा गया

पेयजल को प्रदूषित कर रहे हैं कॉस्‍मेटिक्‍स

बाथरूम से निकला मानव अवशिष्‍ट पीने के पानी को बना रहा है प्रदूषित
रोजाना नहाने के लिए उपयोग में लाए जाने वाले साबुन और शैम्‍पू अब मानव स्वास्थ्य के लिए बड़ा खतरा बनते जा रहे हैं। सीवेज के पानी के साथ इन कॉस्मेटिक्स में मिले रसायन पीने के पानी को भी प्रदूषित करने लगे हैं। इस बात का खुलासा किया गया है ब्रिटेन की रॉयल सोसायटी ऑफ केमिस्ट्री की एक ताजातरीन रिपोर्ट में।
रिपोर्ट में कहा गया है कि साबुन, शैम्पू और परफ्यूम आदि में मिले रसायनों का सीवेज के पानी में अनुपात तेजी से बढ़ रहा है। भारतीय शहरों के लिए यह बात निश्‍िचत रूप से चिंताजनक है, क्योंकि यहां पेयजल और सीवेज के पानी की लाइनें अक्सर एक साथ बिछाई जाती हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि सीवेज के पानी का परिशोधन करने वाले संयंत्रों में इन कॉस्मेटिक्स के मिले रसायन ठीक तरह से साफ नहीं हो पाते और पेयजल में घुल जाते हैं। रिपोर्ट में ब्रिटेन के कुछ बड़े शहरों में पेयजल का परीक्षण किया गया, जिससे पता चला कि उनमें थैलेट्स की मात्रा काफी अधिक है। थैलेट्स करीब 120 रसायनों का एक समूह है, जो पुरुषों के शरीर में पहुंचकर प्रजनन तंत्र को प्रभावित करता है। इस रसायन से पशुओं को भी खासा नुकसान पहुंचता है। महिलाओं में यह रसायन स्तन कैंसर का कारण बन सकता है।
रॉयल सोसायटी ऑफ केमिस्ट्री के वैज्ञानिक जेफ हार्डी ने बताया कि हालांकि ब्रिटेन में लोगों को सप्लाई किए जा रहे पेयजल में इन हानिकारक तत्वों की मात्रा काफी कम है, लेकिन एशियाई देशों में इनका स्तर अधिक हो सकता है, क्योंकि वहां के जलशोधन संयंत्र पश्‍िचमी देशों जितने आधुनिक नहीं हैं। उन्होंने कहा कि अभी तक वैज्ञानिकों को इन तत्वों को रासायनिक रूप से अलग करने का तरीका मालूम नहीं चला है। ऐसे में इतना तो तय है कि मानव शरीर में अभी भी हानिकारक रसायनों की काफी मात्रा पहुंच रही है।

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प्रदूषित पानी पीने से आठ मरे

राबर्ट्सगंज (वार्ता),
उत्तरप्रदेश के सोनभद्र जिले के भिढहवा गाँव में पिछले एक हफ्ते में प्रदूषित जल पीने से आठ लोगों की मौत हो गई।
यह खुलासा अज्ञात बीमारी से गाँव में हो रही मौतों का पता लगाने गए चिकित्सा दल द्वारा सोनभद्र के मुख्य चिकित्साधिकारी डॉ. पीके सिन्हा को सौंपी गई रिपोर्ट में किया गया है।
पिछले एक सप्ताह में जिला मुख्यालय में करीब 45 किमी दूर स्थित भिढहवा गाँव में अज्ञात बीमारी से लगातार हो रही मौतों से ग्रामीणों में भय व्याप्त है।
इस बारे में जानकारी मिलने पर डॉ. सिन्हा ने एक चिकित्सीय दल को अज्ञात बीमारी के बारे में पता लगाने के लिए गाँव भेजा जिसने शुभांगी, कुसुम, आरती, लक्ष्मी, धोधारी, राजेन्द्र, रामू व गोलू समेत आठ लोगों की मौत की पुष्टि करते हुए रिपोर्ट में कहा कि यह मौतें ग्रामीणों द्वारा प्रदूषित नाले का पानी पीने के कारण हुई।

एसटीपी से भी प्रदूषित पानी ही जा रहा है यमुना मे

एसटीपी से भी प्रदूषित पानी ही जा रहा है यमुना मे

चंडीगढ़ : करोड़ों रुपये खर्च होने के बावजूद यमुना एक्शन प्लान के तहत हरियाणा के विभिन्न शहरों में लगे सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) से भी प्रदूषित पानी ही यमुना में डाला जा रहा है।

पलवल के विधायक करण सिंह दलाल इस संबंध में मुख्यमंत्री को खत लिख रहे है और इस मुद्दे को विधानसभा में भी उठाएंगे।

गौरतलब है कि पर्यावरण व वन मंत्रालय ने 1993 में यमुना एक्शन प्लान के तहत हरियाणा व उत्तर प्रदेश के यमुना किनारे के शहरों और दिल्ली को शामिल किया था। इसके लिए जापान से 700 करोड़ का कर्ज लिया गया था। प्राथमिक तौर पर हरियाणा के यमुनानगर, करनाल, पानीपत, सोनीपत, गुड़गांव और फरीदाबाद जिलों को इसमें शामिल किया गया था। बाद में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर छछरौली, गोहाना, घरौंडा, इंद्री, पलवल और रादौर को भी इसमें ले लिया गया।

करण सिंह दलाल ने मंगलवार को दैनिक जागरण को विशेष भेंटवार्ता में बताया कि कई सरकारे आई और चली गईं पर सीवेज ट्रीटमेंट के नाम पर जन स्वास्थ्य विभाग घोटाला कर रहा है। सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के नाम पर सरकारी खजाने को लूटा जा रहा है। इसके दोषी अफसरों को निलंबित करके उन्हे सजा दी जानी चाहिए।

उन्होंने बताया कि प्रशासनिक आयोग के चेयरमैन होने के नाते जब सिंचाई विभाग से यमुना के प्रदूषण के बारे में उनसे पूछा था, तो उन्होंने कहा कि जब तक यमुना एक्शन प्लान के तहत जन स्वास्थ्य विभाग के सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट से प्रदूषित पानी यमुना में गिरता रहेगा तब तक यमुना को प्रदूषण से मुक्त नहीं किया जा सकता।

दलाल ने कहा कि मैंने खुद जाकर देखा कि सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट से प्रदूषित पानी ही वापस यमुना में जा रहा है। ट्रीटमेंट प्लांट के नाम पर एक तालाब में पानी एकत्र किया जाता है। ओवर फ्लो होने पर जब ऊपर का कूड़ा कर्कट बाहर चला जाता है तो यही पानी नालों के जरिए वापस यमुना में डाला जा रहा है। दलाल ने कहा कि ट्रीटमेंट प्लांट आधुनिक होना चाहिए। ट्रीट किए गए पानी को तो दोबारा पिया जा सकता है।

दलाल ने कहा कि यमुनानगर से लेकर मेवात तक बह रही यमुना के प्रदूषण का असर दिखने लगा है। न सिर्फ सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की उल्लंघना की जा रही है अपितु लोगों की सेहत से खिलवाड़ भी हो रहा है। यमुनानगर के किनारे के शहरों में खुजली, कैंसर और टीबी जैसे रोग फैल रहे है। इस प्रदूषित पानी से पशुओं में भी कई तरह के रोग फैल रहे है।