लखनऊ। अपने पूरे 940 किमी. लम्बे बहाव में गोमती की सबसे दयनीय स्थिति लखनऊ में ही है। नीमसार से लखनऊ में प्रवेश करते समय गोमती काफी साफ रहती है। शहर के अंदर प्रवेश करते ही गऊघाट से आगे यह बहुत मैली और बदबूदार हो जाती है। वहीं शहर के बाहर जाते गंगागंज से ही इसकी स्थिति सुधरने लगती है।
गौरतलब है कि पीलीभीत में माधव टांडा से निकलकर यह शाहजहांपुर, लखीमपुर, हरदोई, सीतापुर से होती हुई लखनऊ में प्रवेश करती है। शहर में प्रवेश करते ही गऊघाट के आगे जाकर मंझीघाट से इसमें प्रदूषण का जहर घुलने लगता है। मोहन मीकिन्स से पिपराघाट तक गोमती सर्वाधिक प्रदूषित स्थिति में रहती है। पिपराघाट के बाद लखनऊ से बाहर जाते ही बाराबंकी, सुलतानपुर, जौनपुर में इसकी स्थिति सुधरने लगती है। गाजीपुर में यह गंगा में विलीन होने से पहले यह एकदम साफ-सुथरी हो जाती है।
सर्वोच्च न्यायालय के आदेशानुसार गोमती का लगातार अनुश्रवण करके केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, उत्तरी क्षेत्र (सीपीसीबी)द्वारा उसकी नियमित रिपेार्ट न्यायालय को भेजी जाती है। वहीं भारतीय विष विज्ञान अनुसंधान संस्थान (आईआईटीआर) भी नीमसार, भातपुर, गऊघाट, मोहन मीकिन, गंगागंज डाउन स्ट्रीम, सुल्तानपुर अप स्ट्रीम, सुल्तानपुर डाउन स्ट्रीम, जौनपुर अप स्ट्रीम और जौनपुर डाउन स्ट्रीम बिन्दुओं पर गोमती के जल की लगातार निगरानी करता है। आईआईटीआर रिपोर्ट के मुताबिक लखनऊ से आगे चलकर गंगागंज में फिर इसकी स्थिति में आंशिक सुधार होता है और सुलतानपुर में इसकी स्थिति काफी सुधर जाती है। मोहन मीकिन नाले से लेकर पिपराघाट के बीच गोमती में घुलित आक्सीजन (डीओ) की मात्रा सबसे कम और इसकी जैविक आक्सीजन की मांग (बीओडी) सर्वाधिक है। जो इन बिन्दुओं पर गोमती के जल की दुर्दशा बयान करते हैं।
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गुरुवार, 26 जून 2008
गोमती: एक नदी की उदास कहानी
लखनऊ। दरअसल गोमती अवध को परमेश्वर से वरदान के रूप में मिली नदी है। शिवपुराण में नदी को आदेश दिया गया है कि वह मां बन कर जनता का लालन-पालन करे। गोमती, प्रतिकूल परिस्थितियों में भी माता की भूमिका निभा रही है, यह बात दीगर है कि अवध खासकर लखनऊ के लोग अपनी भूमिका भूल चुके हैं। ऋग्वेद के अष्टम और दशम मण्डल में गोमती को सदानीरा बताया गया है। शिव महापुराण में भगवान आशुतोष ने नर्मदा और गोमती नदियों को अपनी पुत्रियां स्वीकारा है।
वस्तुत: गोमती एक नदी ही नहीं संस्कृति की संवाहिका भी है। कितनी मछलियों ने इससे जीवन पाया है, कितने मगरमच्छों ने इसके तट पर विश्राम किया है। कितनी नौकाएं इसके किनारों से होकर गुजरी हैं। इसके घाटों पर बने मंदिरों में कितने वेद मंत्र गुंजित हुए हैं, कितने घंटे निनादित हुए है, कितने लोगों ने यहां के घाट पर वजू के लिए आब लिया है? कितने आबदारों को पाला-पोसा है इस सरिता के जल ने इसका हिसाब लगा पाना नामुमकिन ही है।
कितने कंठों की तृषा का शमन किया है इसके मृदुल जल ने यह तो वही बता सकता है जिसने उस जल का सेवन किया है।
कई कालखण्डों के इतिहास को अपने हृदय में समेटे है गोमती। नदी ने देखा है कि किस प्रकार मर्यादा पुरुषोत्तम राम के अनुज ने अपनी नगरी इसके तट पर बसायी थी। उसने यह भी देखा है कि कैसे दो बच्चों ने उनसे अपनी माता के परित्याग का प्रतिकार लिया था। किस प्रकार उसके तट पर अनेक ऋषियों ने अपने आश्रम स्थापित किये, किस प्रकार इस क्षेत्र में कथाओं का सूत्रपात हुआ किस भांति इस क्षेत्र में पौरोहित्य का विश्वविद्यालय स्थापित हुआ? श्रीकृष्ण के अग्रज बलराम ने अपने अपराध का प्रायश्चित किया। किस तरह से तथागत ने इसके तट पर विश्राम किया और धम्म पद के उपदेश दिये? एक महान सम्राट की लाल चीवर धारी शांति सेना अपने नृपति के आदेशों-संदेशों के साथ इसके कूलों के किनारों से आगे बढ़ते हुए आत्ममुग्ध भाव से गुजरी थी। कैसे एक विदेशी पर्यटक ह्वेनसांग धम्म सभा में सम्मलित होने के लिए थेरी गाता हुआ यहां से गुजरा था।
किस प्रकार भारशिवों ने श्रीहर्ष की धम्म सभा में उपद्रव करने के बाद नदी को पार करके उत्तरांचल की ओर प्रस्थान किया था। श्रीहर्ष की सेनाएं नदी के तट पर आकर उनकी खोज में काफी समय भटकती रह गयी थीं। राजा जयचन्द ने प्रसिद्ध वीर आल्हा- ऊदल को पासी और भारशिवों का दमन करने के लिए यहां भेजा था।
महान मुगल अकबर ने यहां पर वाजिपेय यज्ञ कराने के लिए एक लाख रुपये यहां के ब्राह्मणों को दिये और गोमती का तट यजु:वेद की ऋचाओं सेगूंज उठा। इसके बाद अपनी विभेद कारी नीति के तहत विप्रों की मर्यादा आंकी गयी। इसी काल में संत शिरोमणि गोस्वामी तुलसी दास ने अपनी प्रिय नदी धेनुमती के जल से मार्जन किया था।
वस्तुत: गोमती एक नदी ही नहीं संस्कृति की संवाहिका भी है। कितनी मछलियों ने इससे जीवन पाया है, कितने मगरमच्छों ने इसके तट पर विश्राम किया है। कितनी नौकाएं इसके किनारों से होकर गुजरी हैं। इसके घाटों पर बने मंदिरों में कितने वेद मंत्र गुंजित हुए हैं, कितने घंटे निनादित हुए है, कितने लोगों ने यहां के घाट पर वजू के लिए आब लिया है? कितने आबदारों को पाला-पोसा है इस सरिता के जल ने इसका हिसाब लगा पाना नामुमकिन ही है।
कितने कंठों की तृषा का शमन किया है इसके मृदुल जल ने यह तो वही बता सकता है जिसने उस जल का सेवन किया है।
कई कालखण्डों के इतिहास को अपने हृदय में समेटे है गोमती। नदी ने देखा है कि किस प्रकार मर्यादा पुरुषोत्तम राम के अनुज ने अपनी नगरी इसके तट पर बसायी थी। उसने यह भी देखा है कि कैसे दो बच्चों ने उनसे अपनी माता के परित्याग का प्रतिकार लिया था। किस प्रकार उसके तट पर अनेक ऋषियों ने अपने आश्रम स्थापित किये, किस प्रकार इस क्षेत्र में कथाओं का सूत्रपात हुआ किस भांति इस क्षेत्र में पौरोहित्य का विश्वविद्यालय स्थापित हुआ? श्रीकृष्ण के अग्रज बलराम ने अपने अपराध का प्रायश्चित किया। किस तरह से तथागत ने इसके तट पर विश्राम किया और धम्म पद के उपदेश दिये? एक महान सम्राट की लाल चीवर धारी शांति सेना अपने नृपति के आदेशों-संदेशों के साथ इसके कूलों के किनारों से आगे बढ़ते हुए आत्ममुग्ध भाव से गुजरी थी। कैसे एक विदेशी पर्यटक ह्वेनसांग धम्म सभा में सम्मलित होने के लिए थेरी गाता हुआ यहां से गुजरा था।
किस प्रकार भारशिवों ने श्रीहर्ष की धम्म सभा में उपद्रव करने के बाद नदी को पार करके उत्तरांचल की ओर प्रस्थान किया था। श्रीहर्ष की सेनाएं नदी के तट पर आकर उनकी खोज में काफी समय भटकती रह गयी थीं। राजा जयचन्द ने प्रसिद्ध वीर आल्हा- ऊदल को पासी और भारशिवों का दमन करने के लिए यहां भेजा था।
महान मुगल अकबर ने यहां पर वाजिपेय यज्ञ कराने के लिए एक लाख रुपये यहां के ब्राह्मणों को दिये और गोमती का तट यजु:वेद की ऋचाओं सेगूंज उठा। इसके बाद अपनी विभेद कारी नीति के तहत विप्रों की मर्यादा आंकी गयी। इसी काल में संत शिरोमणि गोस्वामी तुलसी दास ने अपनी प्रिय नदी धेनुमती के जल से मार्जन किया था।
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