बुधवार, 27 अगस्त 2008

प्रकृति का दुश्मन काला पानी.... सचिन शर्मा

प्रदूषित पानी बना पर्यावरण के लिए खतरा, खेत बन रहे बंजर, कुँए-नलकूप भी हो रहे प्रभावितसचिन शर्मा
भीलवाड़ा। प्रदेश के लिए अमृत समान महत्वपूर्ण माना जाने वाला पानी भीलवाड़ा जिले में प्रदूषण की समस्या का सबसे ज्यादा सामना कर रहा है। वस्त्र नगरी में चल रहे १९ प्रोसेस हाउस से निकलने वाला यह पानी अपनी प्रवृति इतनी अधिक बदल चुका है कि इसका नाम ही काला पानी पड़ गया है। अपनी काली करतूतों के कारण इस पानी से जिले के तीन दर्जन से अधिक गांवों के ५०० से ज्यादा कुँए खराब हो चुके हैं। हजारों बीघा जमीन भी उजाड़ हो गई है। सरकार और जिला प्रशासन ने जल्दी ही प्रदूषण को रोकने का इंतजाम नहीं किया तो यह भीलवाड़ा के जनजीवन के लिए निश्चित ही बहुत घातक सिद्ध होगा।
पाली, बिठूजा, बालोतरा, जसोल और जयपुर के सांगानेर की तर्ज पर भीलवाड़ा में भी प्रोसेस हाउस प्रकृति के लिए काल बनने का काम कर रहे हैं। प्रतिमाह करीब पाँच करोड़ मीटर कपड़ा तैयार करने वाले ये प्रोसेस हाउस जिन रसायनों का उपयोग करते हैं उनसे ना सिर्फ स्थानीय जलस्त्रोत बल्कि बनास और कोठारी नदियों में भी प्रदूषण की भीषण समस्या उत्पन्न हो गई है। जिले के कुँओं में सीपेज के माध्यम से पहुँचने वाला यह पानी कुँओं को झाग से भर देता है। फिर ना तो इसे पीने के उपयोग में लिया जा सकता है और ना खेती करने के। जिन किसानों ने इससे खेती करने की कोशिश की उनकी जमीनें बंजर हो गईं।
राजस्थान उच्च न्यायालय इस आशय के आदेश दे चुका है कि प्रोसेस हाउस जीरो एमिशन के निर्देश को नहीं अपनाते हैं तो जिला प्रशासन उन्हें बंद कर सकता है, लेकिन भीलवाड़ा की तरक्की और उद्योगपतियों के दबाव के कारण जिला प्रशासन ना तो जीरो एमिशन का नियम लागू कर पा रहा है और ना इन प्रोसेस हाउसेज को बंद करवा पा रहा है।

ये बने हैं जान के लिए जोखिम
काले पानी को डिसॉल्व्ड सॉलिड, सल्फेट, क्लोराइड, फ्लोराइड, नाइट्रोजन, हार्डनेस और कैल्शियम की अधिक मात्रा मिलकर घातक बनाती है। इसको किसी भी प्रकार से इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। जानवर इसको पीकर मौत के मुँह में भी जा सकता है।

यह है जीरो एमिशन का नियम?
भीलवाड़ा के प्रोसेस हाउसेज से निकलने वाले पानी को जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग द्वारा पूर्व में ही खतरनाक घोषित किया जा चुका है, क्योंकि यह वॉटर एक्ट के मापदण्डों पर खरा नहीं माना गया था। तब यहाँ राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से जीरो एमिशन का नियम लागू किया गया जिसके तहत प्रोसेस हाउस प्रदूषित पानी को निर्धारित तकनीकों से प्रदूषण मुक्त करने के बाद अपने ही काम में लें और उसे बाहर बिल्कुल नहीं छोड़ें। लेकिन इस महत्वपूर्ण नियम की ही यहाँ सबसे अधिक अनदेखी होती है और प्रोसेस हाउसेज से यह काला पानी रात के अंधेरे में धीरे-धीरे बाहर छोड़ दिया जाता है।

इन गांवों पर टूट रहा है कहर
जिले के जिन तीन दर्जन गांवों के कुँओं और जमीनों पर काले पानी का सर्वाधिक असर हुआ है उनमें मण्डफिया, दर्री, झोंपड़िया, स्वरूपगंज, कल्याणपुरा, चोयलों का खेड़ा, कुम्हारिया, पिपली, मंगरोप, गुवारड़ी, आंमा, ठगों का खेड़ा, आटूण, किशनावतों की खेड़ी, बीलिया, काणोली, सूड़ों का खेड़ा, पातलियास, आरजिया, माण्डल, पालड़ी, सांगानेर, सुवाणा आदि प्रमुख हैं।

- प्रोसेस हाउस की निगरानी मुख्यतः राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड करता है। उसकी सिफारिश पर ही जिला प्रशासन कार्रवाई करता है। बोर्ड अगर हमसे मदद माँगेगा तो हम तुरंत कार्रवाई करेंगे।
- अजिताभ शर्मा, जिला कलेक्टर, भीलवाड़ा

- काले पानी पर काबू पाने के लिए हमने टास्क फोर्स बना रखी है। हम प्रत्येक प्रोसेस हाउस का नियमित निरीक्षण करते हैं। जीरो एमिशन नहीं पाए जाने पर उस पर कार्रवाई होती है, नियमों की पालना के लिए नोटिस दिया जाता है। यह कार्रवाई जयपुर मुख्यालय से होती है।
- वीरसिंह, क्षेत्रीय अधिकारी, राजस्थान प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड

हमने काले पानी की रोकथाम को लेकर न्यायालय में जनहित याचिका लगा रखी है। इस मामले को लेकर आंदोलन भी छेड़ा गया था, लेकिन प्रशासन ना तो इन प्रोसेस हाउस को बंद करवा पाया और ना किसी अन्य जगह स्थानांतरित करवा पाया। प्रोसेस हाउस कपड़ा साफ करने के लिए आधुनिक तकनीक का उपयोग करें तो यह समस्या आधी सुलझ सकती है।
- बाबूलाल जाजू, प्रदेशाध्यक्ष, पीपुल फॉर एनिमल्स

२८ जनवरी, २००६ को लिखा गया

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