गुरुवार, 24 अप्रैल 2008

दामोदर के अस्तित्व को खतरा

:: धनबाद से सुरेश कुमार निराला ::

एक अध्ययन के अनुसार कोयला उद्योग से प्रतिदिन २९९३०घनमीटर जहरीला तत्व इस नदी में प्रवाहित होता है. इसी तरह ताप विद्युत केंद्रों से भी प्रतिदिन २१०८२०३ घनमीटर कचडा नदी के जल में डाला जाता है. यही स्थिति रसायन उद्योगों से निकलने वाले कचडों की भी है. नदी केा प्रदूषित करने का यह सिलसिला वर्षं से जारी है. आलम यह है कि नदी का पानी अब मनुष्य क्या पशुओं के पीने लायक भी नहीं रहा है.

झारखंड की एक प्रमुख नदी दामोदर आज अपने अस्तित्व को बचाने की लडाई लड रही है. विभिन्न औद्योगिक प्रतिष्ठानों द्वारा पर्यावरण नियमों को ताक पर रखकर इस नदी को तेजी से प्रदूषित किया जा रहा है. प्रदूषण का स्तर इतना अधिक बढ चुका है कि आज नदी के अस्तित्व ही खतरे में पड गया है.
झारखंड के खेलाडी से लेकर पश्चिम बंगाल के दुर्गापुर तक फैले इस नदी के दोनों ओर कोयलांचल बसा हआ है.इस नदी के इर्द गिर्द दर्जनों कोयला खदानें कोलवाशरियां, विद्युत ताप केंद्र, उर्वरक व रसायन केंद्र स्थित है. इन औद्योगिक इकाईयों से निकलने वाले अपशिष्ट प्रदार्थ इसी नदी में बहाये जाते है. एक अध्ययन के अनुसार कोयला उद्योग से प्रतिदिन २९९३०घनमीटर जहरीला तत्व इस नदी में प्रवाहित होता है. इसी तरह ताप विद्युत केंद्रों से भी प्रतिदिन २१०८२०३ घनमीटर कचडा नदी के जल में डाला जाता है. यही स्थिति रसायन उद्योगों से निकलने वाले कचडों की भी है.

नदी को प्रदूषित करने का यह सिलसिला वर्षं से जारी है. आलम यह है कि नदी का पानी अब मनुष्य क्या पशुओं के पीने लायक भी नहीं रहा है. लेकिन वास्तविकता इससे परे है कोयलांचल होने के कारण इस इलाके में नलकूप तथा कुंयें ज्यादा कारगर साबित नहीं हते है ऐसे म केवल दामोदर का पानी ही कोयलांचल में रह रहे बीस लाख लोगों के लिये जलस्रोत का काम करती है. लेकिन नदी के प्रदूषित होने के कारण इसका पानी बीमारी फैलाने का काम कर रहा है. चिकित्सकों का मानना है कि प्रदूषित जल के सेवन से ही यहां के ज्यादातर लोग गैस्टि्रक जैसी पेट की बीमारीयों से ग्रसित रहतें है. स्थिति की भयावहता को देखते हुये दामोदर नदी को बचाने की मुहिम विभिन्न संगठनों द्वारा बार-बार चलायी गई पर सरकारी उदासीनता के कारण नतीजा कुछ नहीं निकला. यहां तक कि सरयु राय जैसे वरिष्ठ नेता द्वारा भी कुछ समय पहले दामोदर मुक्ति आंदोलन के तहत जनजागरण अभियान चलाया गया पर इसका भी नतीजा कुछ नहीं निकला. स्थानीय प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड द्वारा कई बार एक्शन प्लान बनाये गये. पर ये प्लान फाइलों मे ही दब कर रह गये. पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार दामोदर नदी म प्रदूषण की रफतार यदि इसी तरह चलती रही तो आने वाले दिनों में इस नदी का अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा. (संवाद मंथन)
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