अंबरीश कुमार
महोबा। चंदेलों की इस प्राचीन राजधानी महोबा में पानी के लिए जगह-जगह जंग शुरू हो गई है। दो दिन पहले बेला बाजर में पानी विवाद में एक दलित महिला को नंगा कर घुमाया गया। रविवार को पानी को कलेक्टर के यहां रात भर धरना प्रदर्शन चला। इस बीच अजरुन बांध से पानी चुराने के आरोप में एक हजर ८९८ किसानों के खिलाफ सिंचाई विभाग ने एफआईआर दर्ज करा दी है। हाल ही में पानी के टैंकर पर चढ़ा एक बच्च फिसला तो पहिए के नीचे आ गया। अस्पताल जते उसकी मौत हो गई। पिछले एक महीने से महोबा और आसपास के इलाके में रोज पानी के लिए पांच-दस लोग मारपीट के बाद अस्पताल पहुंच रहे हैं। पिछले साल अक्तूबर में मोदहा में हैंडपंप विवाद को लेकर आठ लोगों की जन चली गई थी। सूखा, अकाल और अवैध खनन बुंदेलखंड के इस अंचल को बांङा बना रहा है। १७ जुलाई 2007 को महोबा के लोगों ने १५ मिनट की बारिश देखी थी। उसके बाद से आसमान से अब तक कोई पानी बूंद नहीं टपकी। पाताल से पानी लाने के उपाय भी अब नाकाम होते ज रहे हैं। चंदेलों के बनाए एेतिहासिक तालाब राहिल्य सागर, कीरत सागर और मदन सागर जसे बड़े तालाब सूख गए हैं। शहर में पानी सप्लाई की पाइप लाइन तक सूख गई है। पानी के लिए आदमी-आदमी से लड़ रहा है तो जनवर भी हमलावर हो गए हैं। यह वह महोबा है जहां सूखे और अकाल के चलते 90 किसान पिछले वर्ष में खुदकुशी कर चुके हैं।
बुंदेलखंड में महोबा के पास से कोई नदी नहीं गुजरती। दूर से जो नदियां चली जती हैं उनमें धसान, केन और बेतवा नदी शामिल हैं। यही वजह है कि चंदेल राजओं ने यहां एेतिहासिक तालाब बनवाए जो हाल-हाल तक पानी की कमी पूरी करते रहे हैं। पर महोबा के आसपास कबरई, कुलपहाड़ और गौरा पहाड़ क्षेत्र में पहले जंगल कटे, फिर मिट्टी हटाई गई उसके बाद पहाड़ खोद दिए गए। इस इलाके पानी संचयन की पूरी श्रृंख्रला ही समाप्त कर दी गई है। अवैध खनन के चलते बेतहाशा डायनामाइड का इस्तेमाल हुआ और कई पहाड़ सैकड़ो फीट गहरी खाई में बदल चुके हैं। कबरई में कोई भी देख सकता है कि नेताओं, अफसरों और स्थानीय माफिया ने मिल कर बारूद लगाकर किस तरह पहाड़ों को नक्शे से गायब कर दिया है। नेताओं को नई पीढ़ी इसकी अवैध कमाई से मालदार हो चुकी है। पर यहां की धरती बांङा हो गई है। इस इलाके में पानी का संकट और गहराता ज रहा है।
हालांकि प्रशासन अभी भी हवा में है। जिस अंचल में साल में दस-पं्रह मिनट बारिश हो वहां प्रशासन बारिश से जलाशय भरने की उम्मीद करें तो क्या कहेंगे। महोबा की कलेक्टर अनिता चटर्जी के मुताबिक पहाड़ की जगह जो खाई तैयार हुई है वह बरसात में जलाशय बन जएगी और इससे जल संचय हो जएगा। बुंदेलखंड में सूखे सबसे ज्यादा प्रभावित क्षेत्र महोबा का ही है। महोबा के ७५ वर्षीय दशरथ ने कहा, ‘आजदी के बाद पहली बार हमने पानी के लिए इतनी मारामारी देखी है। अब तो पानी के सारे तालाब भी सूख गए हैं। कुएं बेकार हो गए हैं। आए दिन पानी के लिए फसाद हो रहा है।’
सूखे बाद पानी के बढ़ते संकट ने पलायन और तेज कर दिया है। लोग बूढ़ों को और मवेशियों को छोड़ दिल्ली, मुंबई और पंजब के विभिन्न शहरों के टिकट कटा रहे हैं। जब शहर में पानी की दिक्कत हो तो गांव का अंदाज आसानी से लगाया ज सकता है। कुलपहाड़, पनवाड़ी, चरखारी, बेला ताल, श्रीनगर, अजनर और कबरई जसे इलाकों में गांव वाले पानी के लिए रोज नई जंग लड़ते नजर आ रहे हैं। जो पानी मिल रहा है वह भी प्रदूषित। महोबा में जो बड़े तालाब सूखे उनमें कीरत सागर और मदन सागर की नम जमीन पर किसानों ने साग-सब्जी लगा दी ताकि कुछ आमदनी हो जए। पर चार महीने बाद फसल जब तैयार होने को हुई तो प्रशासन ने फसल उखड़वा कर अपने कब्जे में कर ली। गरीब किसान चिल्लाते रहे पर उनकी नहीं सुनी गई। पर प्रशासन का सबसे अमानवीय चेहरा अब सामने आया है। प्रशासन ने करीब दो हजर किसानों पर पानी चोरी का आरोप लगा कर उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करा दी है।
हरिश्चंद के मुताबिक २१ मार्च, २00८ को सिंचाई प्रखंड महोबा के आंकड़ों में पीने के पानी के लिए अजरुन बांध में ५५२ फुट पानी का स्टाक दिखाया गया था। पर २२ मार्च को बांध में एक बूंद पानी नहीं बचा। प्रशासन का दावा है कि इतना पानी एक दिन में जनपद के एक हजर ८९८ किसानों ने चोरी कर लिया। सिंचाई विभाग ने कुलपहाड़ के ८६, अक्ठौहा के २, अस्थौन के ३६९, बमहौरी के १११, उटिया के १२२, भूमिगर के १२६, रामपुरा कदीन के ६५, भटेवर के ३७१, शेरा खालसा के ४00 और छेदामऊ के १२६ यानी कुल ११ गांव के एक हजर ८९८ किसानों के खिलाफ कुलपहाड़, चरखारी, कबरई और महोबा थाना कोतवाली में बांधों की भूमि पर अवैध कब्ज कर पानी की चोरी और पेयजल नष्ट करने का आरोप लगाया है। सिंचाई प्रखंड महोबा के अधिशासी अभियंता कुणाल कुलस्रेष्ठ ने आरोप लगाया कि किसानों ने अजरुन बांध से पानी की चोरी की है और पुलिस इस मामले में त्वरित कार्रवाई नहीं कर रही है। पर सवाल यह उठ रहा है कि अजरुन बांध में २१ मार्च को ५५२ फुट पानी का भंडारन किस तरह चौबीस घंटे में गायब हो गया। कैसे किसान पानी के इतने बड़े स्टाक की चौरी कर लेंगे। संभवत: यह पहली बार एक बड़े जलाशय के पानी की चोरी का आरोप सामने आया है। जहिर है बुंदेलखंड में पानी के लिए फिलहाल जंग तो जरी रहेगी।(साभार- जनसत्ता)
रविवार, 11 मई 2008
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1 टिप्पणी:
मेरा एक विचार है, अगर सरकार बड़ी बड़ी योजनाओं से हटकर सिर्फ़ वृक्षारोपण पर ध्यान लगाये तो पर्यावरण और पानी की समस्या काफी हद तक हल हो सकती है. वृक्षारोपण करने और अपने लगाये वृक्षों की पूरी देखभाल करने वाले व्यक्तियों/संस्थाओं/कोर्पोरेशन को रोपित वृक्षों के हिसाब से इन्कम टेक्स/ प्रोपर्टी टेक्स में कुछ छूट देना शुरू कर दे. तो वृक्षारोपण की लोगों और कम्पनियों में होड़ लग जायेगी. हो सकता है भारत का वन क्षेत्र 35% फ़िर से पार कर जाए.
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