संपूर्ण पृथ्वी का दो तिहाई हिस्सा जलक्षेत्र होने के बावजूद आज पूरे विश्व में मनुष्य के उपयोग में आने वाले जल का भीषण संकट खड़ा हो गया है. समुद्री जल, खारा, नमकीन तथा प्रदूषित होने के अतिरिक्त कहीं-कहीं तो ऐसा विषैला भी है कि जिसे पीने से कोई भी प्राणी मर भी सकता है. तमाम कोशिशों के बावजूद अभी तक वैज्ञानिक इस लक्ष्य तक नहीं पहुंच सके हैं कि समुद्री पानी को शुध्द कर पीने, कृषि में प्रयोग होने तथा औद्योगिक प्रयोग में लाने योग्य बनाया जा सके. यही वजह है कि स्वच्छ और ताजे व मीठे जल की मांग वैश्विक स्तर पर जनसं2या में वृध्दि के साथ-साथ बेतहाशा बढ़ती जा रही है. भारत जैसे विशाल देश में भी इस समय लगभग 30 बड़ी नदियों व शहरों को आपस में जोड़ने जैसा एक बड़ा कार्यक्रम अंतर्राष्ट्रीय जल प्रबंधन संस्थान की देखरेख में चलाया जा रहा है. इस कार्यक्रम को राष्ट्रीय नदी जोड़ परियोजना का नाम दिया गया है.
बावजूद इसके कि भारत एक कृषि प्रधान देश के रूप में जाना जाता है. परन्तु दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि नदियों के जल का सही वितरण व प्रबंधन न होने की वजह से हमारे देश की कृषि का एक तिहाई हिस्सा जल के अभाव या जल की मार से तबाह हो जाता है. जाहिर है इसका दुष्परिणाम किसानों के साथ-साथ प्रत्येक वर्ष हमारे देश की अर्थव्यवस्था को भी भुगतना पड़ता है. भारत के उ8ार पश्चिम व दक्षिणी राज्य जहां नदियों व नहरों से जल लेकर अपनी कृषि की जरूरतों को पूरा कर लेते हैं. वहीं गंगा का पूर्वी क्षेत्र बुरी तरह से बाढ़ की चपेट में रहता है. पूर्वो8ार क्षेत्र की ओर भी कई नदियां बरसात के समय ऐसा विकराल रूप धारण कर लेती हैं कि खेतों में खड़ी फसल की तो बात ही 1या, पूरे-पूरे गांव भी इस बाढ़ में बह जाते हैं. परिणामस्वरूप देश को प्रत्येक वर्ष भारी जान, माल व पशुधन की क्षति उठानी पड़ती है. सदियों से यही सिलसिला चल रहा है. परन्तु ग्लोबल वार्मिंग की चेतावनी के बाद अब भारत सहित पूरी दुनिया के खान खड़े हो गए हैं तथा स्वच्छ व मीठा जल के प्रबंधन हेतु विश्व के कई देशों द्वारा अब तक सकारात्मक किये जाने का संकल्प लिया गया है.
भारत में जिन प्रमुख नदियों को एक-दूसरे से जोड़ने का प्रस्ताव है तथा इनमें से कई परियोजनाओं पर तो काम भी शुरू हो चुका है उनमें कुछ प्रमुख परियोजनाएं इस प्रकार हैं- जैसे कि महानदी को गोदावरी से जोड़ा जाना तथा इन्चमपल्ली नदी को नागार्जुन सागर तथा पुलिचिंताला से जोड़ा जाना. सोमासिला नदी को नागार्जुन सागर ग्रांड अनिकुट लिंक से जोड़ा जाना, पेनार नदी को अलमाटी तथा सिरीसेलम से जोड़ा जाना. यमुना नदी को शारदा व राजस्थान से जोड़ना तथा राजस्थान को साबरमती से जोड़ा जाना. इसी प्रकार सोन बैराज को चुनार तथा दक्षिण में गंगा से जोड़ना. गंगा नदी को दामोदर नदी से व स्वर्ण रेखा नदी से जोड़ना तथा स्वर्ण रेखा को महानदी से लिंक करना. इसी प्रकार फरक्का को सुन्दरवन व जोगीछोपा से जोड़ा जाना प्रस्तावति है. गंगा-गण्डक, घाघरा-यमुना, कोसी- घाघरा व कोसी-मेची नदियों को जड़ा जाना भी प्रस्तावित है. इसके अतिरिक्त नेत्रावती-हेमवती परियोजना, पा6बा-अनचनकोविल-वाईपर लिंक परियोजना का भी प्रस्ताव है. इसी प्रकार दमन-गंगा को पिंजाल में बेदती को वरदा से, पार्वती को काली सिंध व चंबल से एवं पार्वती व तापी व नर्मदा को भी परस्पर जोड़ा जाना प्रस्तावित है.
दुनिया की इस सबसे बड़ी नदी जोड़ परियोजना का एकमात्र उद्देश्य यही है कि बाढ़ के रूप में तबाही मचाने वाली नदियों के व्यर्थ जाने वाले पानी का सदुपयोग किया जा सके तथा नदी जोड़ परियोजनाओं के माध्यम से इस जल का सदुपयोग करते हुए उन क्षेत्रों में भेजा सके जो कि सूखे व जल के भयानक अभाव का सामना करते हैं. ऐसा माना जा रहा है कि यदि तीन चरणों में काम कर रही इस विराट परियोजना को सही ढंग से पूरा कर लिया गया तथा इसमें क्षेत्रीय राजनीति के महारथी नेतागणों का पूरा सहयोग भी मिलता रहा तो इस बात की संभावना है कि भविष्य में हमारे देश में कृषि की उपज में इजाफा होने के साथ-साथ देश की कृषि से होने वाली आय में भी बढ़ोतरी होगी. इसके साथ-साथ बाढ़ व सूखे के परिणामस्वरूप होने वाली तबाही से भी लोगों को निजात मिल सकेगी. और इन सबसे भी अधिक जरूरी बात यह है कि आम लोगों को पीने का व औद्योगिक प्रयोग का मीठा व स्वच्छ जल उपल4ध हो सकेगा. एक ओर तो इस विराट परियोजना के तमाम सकारात्मक परिणाम बताये जा रहे हैं तो दूसरी ओर यह परियोजना, आलोचना व असहयोग का भी शिकार होती जा रही है. कुछ राज्य ऐसे भी हैं जिनके नेता इस नदी जोड़ परियोजना के विरोध में अपने राज्य के लोगों को यह समझाने का प्रयास कर रहे हैं कि इस परियोजना के कार्यान्वित हो जाने के बावजूद उनके हिस्से का जल दूसरे क्षेत्रों में चला जायेगा. इसके लिये इनके पास तरह-तरह के तर्क भी है. परन्तु निश्चित रूप से यह सभी तर्क सीमित, संकीर्ण व वोटबैंक पर आधारित सोच से जुड़े हैं.
तनवीर जाफरी
शनिवार, 24 मई 2008
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