सिध्दार्थ कलहंस
भूजल के अंधाधुंध दोहन और वॉटर रीचार्ज की उचित व्यवस्था नहीं होने के चलते उत्तर प्रदेश के भू-जलस्तर में तेजी से कमी आ रही है।
ऐसे में प्रदेश सरकार को जल माफिया से निबटने के लिए जल्द ही कारगर रणनीति बनानी होगी। उत्तर प्रदेश के 70 में से 69 जिलों में भू-जलस्तर खतरे के निशान से भी नीचे चला गया है। विशेषज्ञों का कहना है कि इन जिलों में बोरिंग का काम रोक देना चाहिए।
सबसे खराब हालत पश्चिमी उत्तर प्रदेश और बुंदेलखंड का है, जहां बीते 10 सालों में भूजल का जबरदस्त दोहन हुआ है। सरकार के भूजल विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक, बहराइच को छोड़कर प्रदेश के सभी जिलों में भूजल का स्तर खतरे की सीमा पार कर चुका है।
बुंदेलखंड में किसानों को बोरिंग की सुविधा देने वाले टयूबवेल प्रोजेक्ट कॉरपोरेशन व जल निगम के अधिकारियों का मानना है कि इलाके में अब बोरिंग करना आसान नहीं रह गया है। महोबा, ललितपुर, चरखारी और झांसी के कई इलाकों में भू-जलस्तर 7-8 मीटर के सामान्य स्तर के मुकाबले गिरकर 70 मीटर तक जा पहुंचा है। गर्मी का पारा चढ़ने के साथ-साथ महोबा, ललितपुर, चरखारी, नरैनी सहित और कई स्थानों पर पीने का पानी 3 रुपये से लेकर 5 रुपये प्रति बाल्टी बिक रहा है।
हालांकि इन इलाकों में सरकार की ओर से नगरपालिकाओं को बिना पैसे पानी का टैंकर उपलब्ध कराने का निर्देश दिया गया है, लेकिन प्रभावशाली लोग इन इलाकों में टैंकर भी 150 से 250 रुपये में बेच रहे हैं।भूजल विभाग के निदेशक एम. एम. अंसारी ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि वॉटर रीचार्जिंग नीति फेल हो गई है।
बहुमंजिला इमारतों में वॉटर रीचार्ज और रेन वॉटर हार्वेस्टिंग की व्यवस्था करने का प्रावधान है, लेकिन इस पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। उन्होंने बताया कि बदायूं में खतरनाक स्तर तक भूजल का दोहन बीते साल किया गया। साथ ही लखनऊ समेत अन्य शहरों में भूजल स्तर का लगातार दोहन किया जा रहा है। विभाग की रिपोर्ट के बारे में अंसारी ने बताया कि प्रदेश के 461 ब्लॉक सूख गए हैं।
जहां लोग पानी की बूंद-बूंद को तरस रहे हों, गरीबी की असल परिभाषा जिस इलाके को देखकर समझ में आ जाती हो, उस इलाके की किस्मत चमकने वाली है। और वह भी ऐसी-वैसी रोशनी से नहीं बल्कि हीरे की चकाचौंध करने वाली रोशनी से!
सूखे और गरीबी की मार झेल रहे बुंदेलखंड में के लोगों के लिए सचमुच यह सपना ही है। लेकिन बहुराष्ट्रीय हीरा कंपनी डीबियर्स और उत्तर प्रदेश सरकार के खनिज निदेशालय के अधिकारियों को बीते हफ्ते जब यहां के बांदा जिले में कालिंजर किले के नीचे बह रही वाघिन नदी के तट पर चल रही खुदायी में हीरे का एक टुकड़ा मिला, तो यह सपना हकीकत की शक्ल अख्तियार करने लगा। डीबियर्स उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में प्रारंभिक सर्वे का काम कर रही है।
प्रदेश सरकार ने इस खोज के लिए उसे जरूरी परमिट पहले ही जारी कर दिया है। खनिज निदेशालय के अधिकारियों की मानें तो किंबरलॉइट चट्टान के अवशेष और हीरे के तीन साबुत टुकड़े मिलने के बाद जल्दी ही इस क्षेत्र में खनन के काम के लिए आवश्यक परस्पेक्टिव लाइसेंस (पीएल) भी जारी किया जाएगा। इसके बाद अंतिम प्कि्या खनन लाइसेंस जारी करने की होती है। गौरतलब है कि दुनिया भर में 80 से 90 फीसदी हीरा किंबरलाइट में ही मिलता है।
खनिज निदेशालय के उप निदेशक डॉ. एस. ए. फारुकी ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि अभी बुंदेलखंड में हीरे होने की पक्की जानकारी होने में एक साल लग सकता है पर ड्रिलिंग और बोर होल (खनन बिंदु) से मिले नतीजे उत्साह बढ़ाने वाले हैं। बुंदेलखंड के सेमरी और कैमूर रेंज की चट्टानों में हीरा और प्लेटिनम मिलने की संभावना है।
साभार - http://hindi.business-standard.com
शुक्रवार, 30 मई 2008
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