गंगटोक [जोसेफ लेप्चा]। सिक्किम के उत्तरी क्षेत्र में हिमालय की 5200 मीटर ऊंची वादियों पर स्थित जेमू, योगसिंग व तलुंग हिमनद का करीब 150 मीटर क्षेत्र पिघल गया है। यह सिक्किम की तिस्ता व रंगीत नदियों के लिए खतरे का संकेत है। तीनों ग्लेशियर या हिमनद तिस्ता व रंगीत के मुख्य स्रोत हैं। वैश्रि्वक उत्ताप के दुष्प्रभाव के चलते विगत 82 वर्ष के तथ्यों के आधार पर पता चला है कि इस क्षेत्र के कई ग्लेशियर गायब हैं।
यह महत्वपूर्ण खुलासा ब्रिटिश पर्वतारोही दल के सदस्यों ने दैनिक जागरण से खास बातचीत के दौरान किया। ग्लेशियर के पिघलाव व पर्वतारोहण अभियान की तीन सदस्यीय टोली में कालिन नावेल्स , जार्जी एवं एड्रिन ओ कोनर (46) शामिल थे। नावेल्स ने बताया कि 1926 में पहली बार एक ब्रिटिश सैन्य अधिकारी कैप्टन बडस्टेंड ने इन हिमनदों के अध्ययन का अभियान शुरू किया था। उनकी प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार तीनों हिमनद आपस में जुड़े हुए थे, लेकिन जब उनकी टोली हिमनदों के पास पहुंची तो वहां उन्हें तीनों हिमनदों को जोड़ने वाली 200 मीटर का भाग खाली व ऊबड़-खाबड़ नजर आया। रिपोर्ट के अनुसार अब एक दूसरे हिमनद तक पहुंचना जोखिम भरा हो गया है। जार्जी ने बताया कि टोली का लक्ष्य हिमनदों को पार कर पश्चिम सिक्किम के योकसम से ग्रीन लेक होते हुए उत्तर सिक्किम के लाचेन पहुंचने का था, लेकिन बार-बार बिगड़ते मौसम के चलते वह ऐसा नहीं कर सके। इस बीच खाद्य पदार्थो का अभाव भी आड़े आ रहा था। अभियान के दौरान 5200 मीटर की ऊंचाई तक 28 दिनों के अंतराल में करीब 120 किमी की थका देने वाली पैदल यात्रा करनी पड़ी। अभियान योकसम से शुरू किया गया था व तलुंग हिमनद के नीचे स्थित योंगीटार को बेस कैम्प बनाया गया था। लेकिन अभियान में केवल योंगसिंग व तलुंग तक पहुंचा जा सका। वहां से जेमू ग्लेसियर पहुंचने के लिए तीन दिनों की असफल यात्रा की गई। योकसम से ऊपर गोचेला में पहुंचने के लिए पर्वतारोहियों को खराब मौसम के चलते बेस कैंप वापस लौटना पड़ा। एक अन्य पर्वतारोही ओ कोनर ने केंद्र व राज्य सरकार को पर्वतारोहण की अनुमति देने के लिए धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा कि भविष्य में उक्त ग्लेशियर क्षेत्र पर्वतारोहियों को प्रेरित करता रहेगा।
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रविवार, 8 जून 2008
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