झीलों एवं नम भूमि का संरक्षण‘ विषय पर आधारित इस सम्मेलन का आयोजन भारत सरकार के पर्यावरण एवं वन मंत्रलय द्वारा राजस्थान सरकार एवं इन्टरनेशनल लेक एन्वायरन्मेंट कमेटी, जापान के सहयोग से किया गया है।
नई दिल्ली, २९ अक्टूबर। राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा देवी सिंह पाटील ने झीलों एवं नम भूमि के संरक्षण के लिए विश्व स्तरीय प्रयास करने पर जोर देते हुए कहा कि समय आ गया है जब हम अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग के कदम उठाते हुए जल सुरक्षा पर गंभीरता से कार्य करें।
श्रीमती पाटील सोमवार को जयपुर के बिरला ऑडिटोरियम में आयोजित पांच दिवसीय १२वें विश्व झील सम्मेलन ‘ताल-२००७‘ का विधिवत उद्घाटन करने के बाद प्रतिभागियों एवं उपस्थित लोगों को सम्बोधित कर रहीं थीं। ‘भविष्य के लिए झीलों एवं नम भूमि का संरक्षण‘ विषय पर आधारित इस सम्मेलन का आयोजन भारत सरकार के पर्यावरण एवं वन मंत्रलय द्वारा राजस्थान सरकार एवं इन्टरनेशनल लेक एन्वायरन्मेंट कमेटी, जापान के सहयोग से किया गया है।
राष्ट्रपति ने कहा कि ‘झीलों को बचाने के अभियान‘ को सफल बनाने के लिए हम सबको मिलकर प्रयास करने की जरूरत है। उन्हने कहा कि बढते शहरीकरण एवं औद्योगीकरण के कारण विश्व भर में झीलों को अनेक प्रकार से क्षति पहुंची है। इसी कारण से सभी देशों में झीलों के पुनरूद्धार एवं उनकी जल की गुणवत्ता को सुधारने के लिए सघन प्रयास किये गये हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि विकसित और विकासशील देशों के बीच झीलों के संरक्षण एवं उनके रखरखाव के संबंध में सहभागिता स्थापित करने के प्रयास किये जाने चाहिए और इसमें तकनीकी आदान-प्रदान एवं क्षमता निर्माण पर मुख्य रूप से सहयोग होना चाहिए।
श्रीमती पाटील ने झीलों के पुनरूद्धार के लिए सभी सरकारों, गैर सरकारी संगठनों, स्थानीय समुदाय एवं व्यक्तियों की भागीदारी प्रोत्साहित करने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि झीलों को स्थाई रूप से संरक्षित करने में जनभागीदारी बहुत महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि गैर सरकारी संगठनों को झीलों के संरक्षण के प्रति जन चेतना जाग्रत करने के साथ-साथ स्थानीय समुदाय के क्षमता निर्माण में भी मदद करनी चाहिए।
राष्ट्रपति ने कहा कि आज ‘‘ग्लोबल वार्मिंग‘‘ और मौसम में हो रहे परिवर्तन से विश्व भर में झीलों के अस्तित्व पर खतरा उत्पन्न हो गया है। उन्होंने ‘इन्टर-गवर्नमेंटल पैनल ऑफ क्लाईमेटिक चेंज‘ की रिपोर्ट की चर्चा करते हुए कहा कि इस रिपोर्ट के अनुसार आने वाले वर्षों में झीलों एवं नम भूमि में जल क्षेत्र एवं जैव विविधता में महत्वपूर्ण परिवर्तन होंगे। इसी को दृष्टिगत रखते हुए हमें मौसम में सुधार के प्रभाव को कम करने विशेषकर शुद्ध जल संसाधन के लिए विशेष कदम उठाने होंगे।
श्रीमती पाटील ने झीलों के संरक्षण के लिए प्रभावी कानून बनाने की आवश्यकता पर भी जोर दिया। उन्होंने भारत में इस संबंध में उठाये गये कदमों की सराहना करते हुए कहा कि भारत पहला देश है जिसने कि जल प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए व्यापक कानून बनाया और इसी के साथ विश्व स्तर पर संरक्षण प्रयासों के तहत १९८१ में नम भूमि पर आयोजित रामसर कन्वेंशन में भी सक्रिय रूप से भागीदारी की थी। उन्होंने कहा कि हमारे देश में अनेक झीलों के संरक्षण के प्रयासों को विश्व स्तर पर सराहा गया है। उन्होंने कहा कि चिल्का झील के पुनरुद्धार के लिए देश को रामसर संरक्षण अवार्ड दिया गया। इसी प्रकार भोपाल झील के संरक्षण कार्य की भी अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसा हुई है।
राजस्थान का जिक्र करते हुए श्रीमती पाटील ने कहा कि राज्य में बारिश के पानी को एकत्रित करने के लिए झीलों के निर्माण की बहुत पुरानी परम्परा रही है। उन्होंने कहा कि राजस्थान में वर्षों पहले पिछोला, जयसमंद, फतेहसागर एवं उम्मेदसागर जैसी झीलों को निर्माण किया गया था। उन्होंने बताया कि जयपुर की मानसागर झील का निर्माण ४०० वर्ष पूर्व जयपुर की स्थापना से भी पहले किया गया था जबकि जमुवारामगढ झील का निर्माण शहर को पेयजल सुलभ कराने के लिए १२५ वर्ष पूर्व किया गया था।
समारोह की अध्यक्षता करते हुए राजस्थान के राज्यपाल श्री एस.के. सिंह ने कहा कि झीलें मानव की आजीविका को बनाये रखने तथा आर्थिक गतिविधियों में सहायक भूमिका निभाती हैं। उन्होंने कहा कि विकास प्रक्रिया के साथ पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता बहुत आवश्यक है। उन्होंने झीलों के संरक्षण एवं पुनरुद्धार तथा नम भूमि को राजस्थान की राष्ट्रीय धरोहर एवं पारिस्थितिकी का हिस्सा बनाने पर जोर दिया।
राज्यपाल ने कहा कि भारत जैव विविधता वाला देश है जिसमें विश्व के ७ प्रतिशत फ्लोरा, ६.२५ प्रतिशत फोना, एम्फीबियंस तथा रेंगने वाले जीव जन्तुओं की ६१४ प्रजातियां, पक्षियों की १२२५ तथा ‘मैमल्स‘ की ३५० प्रजातियां हैं। उन्हने कहा कि आज इनम से कुछ प्रजातियों के सामने गंभीर संकट बना हुआ है जो अधिकांश झीलों एवं नम भूमि के आसपास उपलब्ध हैं। ऐसे में आवश्यक है कि हम हालातों में सुधार एवं प्रजातियों के संरक्षण के लिए कार्य करें।
इस अवसर पर बोलते हुए मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे ने कहा कि राजस्थान नम भूमि एवं झीलों की दृष्टि से विविधता वाला प्रदेश है। उन्होंने कहा कि इनके संरक्षण की सांस्कृतिक परम्परा है तथा हम जल इकाइयों को श्रद्धा से पूजते हैं। उन्होंने कहा कि पुष्कर सरोवर के किनारे प्रतिवर्ष सुप्रसिद्ध पुष्कर मेला आयोजित किया जाता है। मुख्यमंत्री ने कहा कि उदयपुर पर्यटकों के आकर्षण का ही नहीं बल्कि समृद्ध जैव विविधता वाला क्षेत्र है।
उन्होंने केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्री का राजस्थान में झीलों के संरक्षण के प्रस्तावों पर स्वीकृति देने के लिए आभार व्यक्त करते हुए कहा कि केन्द्र सरकार को भरतपुर के केवलादेव राष्ट्रीय पार्क की नम भूमि के लिए भी आवश्यक कदम उठाने चाहिए जिससे कि वहां के जीव-जन्तु एवं पर्यावरण को भी संरक्षित किया जा सके। उन्होंने आशा व्यक्त की कि राजस्थान में केन्द्र की मदद से नम भूमि और झीलों के पर्यावरण को सुधारने में सफलता मिलेगी।
श्रीमती राजे ने नम भूमि और झीलों के पुनरुद्धार और संरक्षण के लिए व्यापक जन चेतना जाग्रत करने की आवश्यकता प्रतिपादित की। उन्होंने बताया कि राज्य सरकार ने गत वर्षों में जनभागीदारी से जल प्रबंधन एवं शिक्षा के क्षेत्र मे सफलतापवूर्वक कई कार्यक्रमों को क्रियान्वित किया है और झीलों के संरक्षण के संबंध में भी इसे अपनाया जा सकता है।
केन्द्रीय पर्यावरण राज्यमंत्री श्री नमोनारायण मीणा ने अतिथियों का स्वागत करते हुए झीलों एवं नम भूमि के संरक्षण एवं रखरखाव की आवश्यकता प्रतिपादित की और केन्द्र सरकार झील सीमा तथा इसके बहाव क्षेत्र में अतिक्रमण एवं अनैतिक गतिविधियों को अपराध की श्रेणी में लाने की तैयारी कर रही है। इसके लिए एक अलग से कानून बनाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि झीलों के अस्तित्व को बचाना आज की एक चुनौती है तथा इसके लिए लोगों में जागरूकता आवश्यक है।
श्री मीणा ने बताया कि बढती जनसंख्या तथा बढते शहरीकरण से झीलों तथा नम भूमि के रखरखाव में काफी बदलाव आया है और प्रदूषण की समस्या बढ रही है। उन्होंने बताया कि मंत्रलय ने देश के १३ राज्यों की ४८ झीलों के रखरखाव का कार्य अपने हाथ में लिया है। उन्होंने बताया कि राजस्थान की मानसागर झील तथा हाल ही में अजमेर की आनासागर झील तथा आबू की नक्की झील का कार्य हाथ में लिया गया है।
उन्होंने आशा व्यक्त की कि इस पांच दिवसीय सम्मेलन में झीलों के रखरखाव तथा संरक्षण के लिए अच्छे सुझाव सामने आएंगे। उन्होंने बताया कि दक्षिणी एशिया में पहली बार हो रही इस कांफ्रेंस में ६० देशों के लगभग ८०० वैज्ञानिक भाग ले रहे हैं।
इन्टरनेशनल लेक एनवायरन्मेंट कमेटी फाउंडेशन जापान के डायरेक्टर जनरल श्री होरोनोरी हामानाका ने कहा कि झीलों तथा नम भूमि के संरक्षण के लिए सर्वप्रथम १९८४ में इस प्रकार का पहला सम्मेलन आयोजित किया गया था तथा इसके बाद दो वर्षों के अंतराल में विश्व के विभिन्न भागों में इसके सम्मेलन निरन्तर हो रहे हैं जो वैज्ञानिक सोच के साथ विकासशील देशों को झीलों तथा नम भूमि के रखरखाव के उपाय सुझाते हैं। उन्होंने आशा प्रकट की कि सम्मेलन में आने वाले सुझाव इस कार्य को एक नई दिशा प्रदान करेंगे।
योजना आयोग के सदस्य श्री वी.एल. चोपडा ने मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए बताया कि वर्ष २००१ में योजना आयोग ने झील संरक्षण कार्यक्रम हाथ म लिया तथा इसके लिए २२० करोड रुपए का प्रावधान किया है। उन्होंने बताया कि एन.आर.सी.पी.कार्यक्रम के तहत देश की ३५ नदियां तथा २५ जोन आते हैं।
उन्होंने जल की आवश्यकता तथा महत्व पर प्रकाश डालते हुए इसके प्रति जन चेतना जाग्रत करने की जरूरत प्रतिपादित की। उन्होंने झीलों तथा नम भूमि की महत्ता पर विस्तार से प्रकाश डाला।
इस अवसर पर राज्य के पर्यावरण एवं वन मंत्री श्री लक्ष्मीनारायण दवे, इबारकी प्रीफेक्चर जापान के गर्वनर श्री हाशीमूतो, सांसद श्री गिरधारी लाल भार्गव, मुख्य सचिव श्री डी.सी. सामंत, पुलिस महानिदेशक श्री ए.एस.गिल, बडी संख्या में प्रशासनिक अधिकारी, देश-विदेश से आए वैज्ञानिक, पर्यावरण विशेषज्ञ तथा गैर सरकारी संगठनों के प्रतिनिधि उपस्थित थे। सम्मेलन में ६० देशों के लगभग ६०० प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं।
शनिवार, 7 जून 2008
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