बुलंदशहर। जनपद में कभी भी धरती दरक सकती है। जिले के तीन ब्लाक डार्क जोन में तब्दील हो चुके हैं। भू-जलस्तर लगातार गिरता जा रहा है। मानव की खुशहाली का आधार प्रकृति है, लेकिन जब प्रकृति का अंधाधुंध दोहन किया जाता है, तो वह भी विकराल रूप धारण कर लेती है। प्रदेश में कई स्थानों पर धरती फटने के मामले इसका प्रमाण हैं। बुलंदशहर में भी धरती फटने की काली छाया मंडरा रही है। दरअसल, धरती के फटने के पीछे मुख्य कारण जलदोहन और तापमान में अंतर है। भू-जलस्तर के लगातार नीचे गिरते रहने से धरती की परतों में ख्िाचाव आता है। इस कारण धरती की परतें खिसकती हैं। धरती के आंतरिक हिस्से की यह घटना ऊपरी परत पर धरती फटने के रूप में दिखाई देती है।
जिले का भू-जलस्तर लगातार गिर रहा है। प्रशासन ने तीन ब्लाक क्षेत्रों को डार्क जोन घोषित कर दिया है। इनके अलावा भी पांच ब्लाक क्षेत्र खतरे में हैं। सिकंदराबाद, शिकारपुर और ऊंचागांव ब्लाक डार्क जोन में बदल गए हैं। यहां भू-जलस्तर लगातार गिरते हुए खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है। अधिकतर स्थानों पर भू-जल की पहली परत खत्म हो चुकी है। हर तीसरे साल नलकूप बोरिंग और नल गहरे करने पड़ते हैं। कई क्षेत्रों में सामान्य नल, जो उथले लगाए जाते हैं, ने पानी देना बंद कर दिया है। कृषि विज्ञान केंद्र के निदेशक और प्रमुख मौसम, कृषि भू-गर्भ वैज्ञानिक डा. विवेकराज का कहना है कि जब जमीन में पानी का ऊपरी रिसाव कम हो जाता है और दोहन लगातार जारी रहता है, तो परतों के बीच में नमी की कमी हो जाती है। इसका नजारा जमीन फटने के रूप में देखने को मिलता है। मानकों के अनुसार डार्क जोन में नलकूप लगाने पर प्रतिबंध लगा दिया जाता है। जल रिसाव के साधनों को बढ़ावा दिया जाता है। डा. विवेकराज ने बताया कि सतह पर हरे पेड़-पौधों की कमी के कारण तापमान बढ़ जाता है, जबकि धरती का तापमान पानी की कमी से बढ़ता रहता है। जनपद के अलावा भू-गर्भ विभाग की रिपोर्ट में पूरा मेरठ जनपद खतरे के मुहाने पर बैठा है। सबसे ज्यादा खतरा बुलंदशहर और नोएडा क्षेत्र पर है। सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि व प्रौद्योगिकी शोध संस्थान के पूर्व निदेशक डा. ओडी शर्मा ने बताया कि जमीन का फटना हालांकि ज्यादा खतरनाक नहीं है, फिर भी बड़े खतरे का संकेत जरूर है। यदि अभी से सावधानी नहीं बरती गई तो आने वाला समय प्राकृतिक दुर्घटनाओं वाला होगा। उप कृषि निदेशक एसएस चौहान का कहना है कि बुलंदशहर सहित मेरठ मंडल के हालात अच्छे नहीं हैं। समाज को अब जागरूक हो जाना चाहिए। यदि लापरवाही जारी रही, तो आने वाले समय में प्रकृति हमें संभलने का मौका नहीं देगी।
गुरुवार, 26 जून 2008
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