भास्कर न्यूज
उदयपुर. प्रदूषित पानी से उदयसागर झील में अब मछलियां और अन्य जलचर प्राणी मर रहे हैं। झील किनारे कई जगह मछलियां मरी हुई पड़ी हैं। मत्स्य विभाग भी इससे बेखबर है। इससे पहले पीछोला व फतहसागर का जलस्तर कम होने व तापमान बढ़ने से मछलियां मरी थी।
उदयसागर किनारे मरी हुई मछलियों का आकार मध्यम से बड़ा है। चारों ओर किनारे पर जगह-जगह मछलियां मरी हुई दिखाई दी हैं। कई बार तो लोग इन मछलियों को उठाकर ले जाते हैं, लेकिन कुछ क्षेत्रों में मरी हुई मछलियों की बदबू फैल रही है। इसकी बड़ी वजह झील में पानी का प्रदूषित होना है। पिछले दो-तीन सालों से लगातार जल स्तर घटने पर झीलों में मछलियों के मरने की घटनाएं सामने आई हैं।
कुछ दिन पहले भी पीछोला में मछलियां मर गई थीं। शहर का इंडस्ट्रीयल वेस्ट जाने से उदयसागर रासायनिक तौर पर सर्वाधिक प्रदूषित झील बन चुकी है। ऐसे में जलचरों के जीवन पर संकट आना स्वाभाविक है। इधर, मछलियों के मरने की घटना की जानकारी मत्स्य विभाग को नहीं मिली है।
उपनिदेशक, फिशरीज डिपार्टमेंट इस्माईल अली दुर्गा ने बताया कि उदयसागर में मछलियों की मौत के बारे में कोई रिपोर्ट विभाग को नहीं मिली है। पानी व मृत मछलियों के सेंपल लिए जाएंगे जिसके बाद ही मौत के कारणों का खुलासा करना संभव होगा। दुर्गा ने बताया कि मौसम में परिवर्तन होने से कई बार पानी में ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है, जिससे मछलियां व अन्य जल जीव मरने लगते हैं।
रिपोर्ट : केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण मंडल की रिपोर्ट के अनुसार उदयपुर की झीलों में प्रति 100 मिलीलीटर कुल जीवाणु की संख्या (एमपीएन) 4200 से 7600 है जबकि नहाने योग्य पानी में यह 500 से कम होने चाहिए। उदयसागर झील में जीवाणुओं की संख्या 2 हजार से 6200 एमपीएन है। इसी तरह बड़ी तालाब, फतहसागर, स्वरूपसागर, पीछोला, आयड़ नदी की तुलना में उदयसागर पानी की हार्डनेस और क्षारीयता के मामले में दूसरे नंबर पर है।
जोखिम के स्तर को पार कर चुका प्रदूषण
पर्यावरणविद् अनिल मेहता के अनुसार झीलों में जमा प्रदूषक तत्व व निरंतर गिरते रहे गंदे नालों व ठोस कचरे के कारण पानी की गुणवत्ता निरंतर गिरती जा रही है। झीलों में हानिकारक जीवाणुओं की संख्या भी बहुत अधिक तादाद में है जो जलचरों के अस्तित्व पर बड़ी चुनौती साबित हो रही है।
सोमवार, 25 अगस्त 2008
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