पूर्वोत्तर भारत के राज्य अरुणाचल प्रदेश में कई पनबिजली परियोजनाओं का काम शुरू किया गया है। निपको के तत्वावधान में रंगा नदी पनबिजली संयंत्र के निर्माण का काम पूरा भी हो चुका है। पिछले दिनों अरुणाचल प्रदेश के दौरे पर आए प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने दिबांग पनबिजली संयंत्र का शिलान्यास किया ।
गौरतलब है कि जब नदियों पर बड़े बांध बनाकर बिजली पैदा करने के लिए कोई संयंत्र लगाया जाता है तो हमेशा ऐसी परियोजना का विपरीत प्रभाव पर्यावरण पर पड़ता है। बड़े बांधों का विरोध जताने वाले पर्यावरण विशेषज्ञ मानते हैं कि अरुणाचल प्रदेश में भूकंप आने पर बड़े बांध व्यापक तबाही मचा सकते हैं। इतना ही नहीं, ऐसे बड़े बांधों का खामियाजा पड़ोसी राज्य असम को भी भुगतना पड़ सकता है।
असम की अधिकतर नदियां अरुणाचल प्रदेश की पहाड़ियों से निकलकर ब्रह्मपुत्र में आकर मिलती हैं। इन नदियों के ऊपरी हिस्सों पर अरुणाचल प्रदेश में बनाए जा रहे बड़े बांधों का प्रतिकूल प्रभाव असम के मैदानी इलाकों पर पड़ सकता है और भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं की आशंका प्रबल हो सकती है।
बड़े बांधों का विरोध कर रहे पर्यावरण कार्यकर्ताओं का कहना है कि मामूली भूकंप के झटके से ही बांध में दरार आ सकती है या भूस्खलन के चलते बांध को नुकसान पहुँच सकता है। अरुणाचल प्रदेश के यजाली इलाके में निपको ने जो 405 मेगावाट का रंगा नदी पनबिजली संयंत्र लगाया है, इसका प्रतिकूल प्रभाव असम के लखीमपुर जिले के मैदानी इलाके में नजर आने लगा है। यजाली में नदी पर बांध बनाए जाने की वजह से धारा का प्रवाह अवरुद्ध हो गया है और यही वजह है कि लखीमपुर जिले में नदी सूख-सी गई है। रंगा नदी के सूख जाने से लखीमपुर जिले के ग्रामीणों को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। मीडिया रिपोर्टों से पता चलता है कि जिले के देवबिल और आमतोला इलाकों में पानी की किल्लत होने से बांस और सुपारी के पेड़ सूखते जा रहे हैं।
इसी तरह अरुणाचल प्रदेश के गेरुवामुख इलाके में एनएचपीसी 2000 मेगावाट का लोअर सुवनशिरि पनबिजली संयंत्र लगा रहा है। लगातार लोगों के विरोध को देखते हुए फिलहाल बांध बनाने का काम स्थगित रखा गया है और जनता की शिकायतों पर ध्यान देने का आश्वासन दिया गया है। गेरुवामुख में निर्माणाधीन बांध के खतरों के बारे में ग्रीन हैरीटेज और रूरल वालंटियर कमेटी जैसे ग़ैर-सरकारी संगठन आंदोलन चलाते रहे हैं। लेकिन इस गंभीर मुद्दे के प्रति असम सरकार उदासीन बनी हुई है। इन ग़ैर-सरकारी संगठनों का कहना है कि लोअर सुवनशिरि पनबिजली परियोजना से सिर्फ बहुराष्ट्रीय कंपनियों एवं विदेशी वित्तीय एजेंसियों को ही फायदा होगा, दूसरी तरफ बड़े बांध का निर्माण पूरा होने पर असम के लखीमपुर एवं धेयाजी जिले के किसानों की खेती हमेशा के लिए तबाह हो जाएगी। भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदा की स्थिति में इस बांध का खामियाजा समूचे असम को भुगतना पड़ेगा।
पड़ोसी राज्य असम के हितों की परवाह किए बिना अरुणाचल प्रदेश सरकार कई पनबिजली परियोजनाओं को हरी झंडी दिखा चुकी है, जबकि वह जानती है कि अरुणाचल की पहाड़ियों से होकर बहने वाली नदियां असम के मैदानी इलाकों में उतरती हैं और बड़े बांध बनाए जाने के बाद असम में इन नदियों का वजूद मिट सकता है। केन्द्राrय विद्युत प्राधिकरण के अनुसार अरुणाचल प्रदेश में, देश में सर्वाधिक 60 हज़ार मेगावाट बिजली उत्पादन करने की संभावना है। यही वजह है कि रिलायंस सहित कई निजी कंपनियां अरुणाचल प्रदेश के संसाधन का दोहन करने के लिए उतावली नजर आ रही हैं। अरुणाचल प्रदेश की सरकार ने निजी कंपनियों की खुशामद से खुश होकर दिबांग, दिहिंग और पारे नदियों पर पनबिजली संयंत्र की घोषणा की है।
अरुणाचल प्रदेश सरकार ने पिछले साल एनएचपीसी के साथ एक करार पर हस्ताक्षर किया जिसके तहत एनएचपीसी दिबांग पनबिजली संयंत्र की स्थापना करेगा। इस संयंत्र से देश में सबसे अधिक 3000 मेगावाट बिजली उत्पादन करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। 27 हज़ार करोड़ रुपए की इस परियोजना से उत्पादित होने वाली बिजली में राज्य सरकार की 12 फीसदी हिस्सेदारी होगी। इस परियोजना के लिए एनएचपीसी ने अरुणाचल प्रदेश सरकार को अग्रिम कर्ज़ के रूप में 14 करोड़ रुपए दिए हैं। इस राशि का इस्तेमाल अरुणाचल प्रदेश सरकार ने सहकारी बैंकों को दिवालिएपन से उबारने के लिए किया है। इस उदाहरण से स्पष्ट होता है कि खस्ताहाल वित्तीय स्थिति से उबरने के लिए अरुणाचल की सरकार पर्यावरण विनाश की परवाह किए बिना पनबिजली संयंत्रों को मंजूरी दे रही है।
दिबांग और पारे पनबिजली परियोजना से भी असमवासियों को काफी नुकसान पहुँच सकता है। दोनों परियोजनाओं का शिलान्यास प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने किया। प्रधानमंत्री ने अरुणाचल के लिए एक हज़ार करोड़ रुपए के विशेष आर्थिक पैकेज की घोषणा की। इस पैकेज में बाढ़ नियंत्रण के लिए 400 करोड़ रुपए अलग से निर्धारित किए गए हैं। इसका अर्थ है कि केन्द्र को इस बात की जानकारी है कि बड़े बांधों की वजह से व्यापक तबाही की स्थिति आने वाले समय में पैदा हो सकती है। जब-तब अरुणाचल में भूस्खलन का संकट पैदा होता रहा है। वैसे भी राज्य के लिए बाढ़ कभी गंभीर समस्या नहीं रही है। बड़े बांधों के निर्माण के बाद नदियों का स्वरूप ही बदल सकता है। और असम के निवासियों को सबसे ज्यादा नुकसान उठाना पड़ सकता है।
जब किसी नदी पर पनबिजली संयंत्र लगाने की योजना बनाई जाती है तो विभिन्न सरकारी विभागों, एजेंसियों, मंत्रियों और पड़ोसी राज्य सरकारों से अनुमति लेनी पड़ती है। असम सरकार ने बड़े बांधों से होने वाले खतरों के संबंध में अब तक चुप्पी साध रखी है। सिर्फ ग़ैर-सरकारी संगठन इस मुद्दे को उछाल रहे हैं और उनके विरोध को नजरअंदाज करती हुई अरुणाचल सरकार पनबिजली संयंत्रों का काम तीव्रता के साथ आगे बढ़ाती जा रही है।
शनिवार, 7 जून 2008
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