ज्ञानेन्द्र रावत
संयुक्त राष्ट्र का आकलन है कि दुनिया में एक अरब से ज्यादा लोगों को साफ पानी उपलब्ध नहीं है। विश्व स्वास्थ्य संगठन और यूनेस्को सहित संयुक्त राष्ट्र की चौबीस एजेंसियों का पानी और दूसरी अन्य बुनियादी सुविधाओं के बारे में किया गया एक अध्ययन सबूत है कि यदि लोगों को पीने का साफ पानी मुहैय्या करा दिया जाता है तो हर साल प्रदूषित पानी पीने की वजह से अतिसार, मलेरिया और दूसरी अन्य बीमारियों से होने वाली लाखों मौतों को टाला जा सकता है। इसके लिए उक्त एजेंसियां अव्यवस्था भ्रष्टाचार, नौकरशाही का संवेदनहीन रवैया, सक्षम संस्थानों की अनुपलब्धता और बुनियादी सुविधाओं का अभाव तथा नागरिकों से जुड़ी इन समस्याओं पर सरकार का अंकुश न होना अहम मानती हैं।
अब यह जगजाहिर है कि दुनिया की कुल आबादी के पांचवे हिस्से को पानी मयस्सर नहीं है। दुनिया के 123 देशों में जहां बड़ी संख्या में लोग प्रदूषित पानी पीने के लिए बाध्य हैं, उन देशों में भारत का नम्बर 121 वां है। जबकि हमारा पड़ोसी देश बांग्लादेश साफ पानी के मामले में हमसे 80वें व श्रीलंका और पाकिस्तान हमसे 40 स्थान ऊंचे हैं। समूची दुनिया में पानी के भारी संकट से प्रभावित होने वाले भारत और चीन की अकेली 40 फीसद आबादी को इसका सामना करना पड़ रहा है। जल उपलब्धता के मामले में भारत का स्थान 180 देशों में 133वां है। असलियत में दुनिया में 2.6 अरब आबादी को साफ–सफाई, स्वच्छ पेयजल और गंदे नाले के निकास जैसी बुनियादी सुविधाएं तक उपलब्ध नहीं हैं। भारत में भू–जल के अतिशय दोहन एवं प्रदूषण के कारण नाइट्रेट, अमोनिया, क्लोराइड व फ्लोराइड जैसे तत्वों का भू–जल पर अत्याधिक दबाव है, जिसके परिणाम स्वरूप उसमें घुलन आक्सीजन की मात्रा दिनों–दिन लगातार कम होती जा रही है।
दुनिया के सभी वैज्ञानिक इस बात पर एकमत हैं कि सदियों से पीने का साफ व सुरक्षित माना जाने वाला भूमिगत जल कृषि कार्यो में रासायनिक खादों व उघोगों में रसायनों के बेतहाशा इस्तेमाल और उसके विषाक्त निकास से बुरी तरह प्रदूषित हो गया है। वैज्ञानिकों ने भूमिगत जल में मौजूद तरह-तरह के रसायनों से कैंसर समेत अन्य किस्म की बीमारी होने की पुष्टि बहुत पहले से कर दी है। लंदन के शोधकर्ताओं ने यह साबित किया है कि जहां पेयजल में लिंडेन, मालिथयोन, डीडीटी और क्लोपाइरियोफोस जैसे कीटनाशक तत्व मौजूद रहते हैं, वहां के लोगों में कैंसर, स्तन कैंसर, मधुमेह, रक्तचाप, कब्ज और गुर्दे सम्बंधी रोग बहुतायत में पाये जाते हैंं। इसका सबसे ज्यादा असर बच्चों पर पड़ता है। भूजल स्रोतों की हालत इससे भी ज्यादा खराब है। सर्वेक्षण इस बात के प्रमाण हैं कि उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश व पश्चिम बंगाल के भूमिगत जल में नाइट्रोजन, फास्फेट, पोटेशियम के अलावा सीसा, मैग्नीज, जस्ता, निकिल और लौह जैसे रेडियोधर्मी पदार्थ व जहरीले तत्व निर्धारित मान्य स्तर से काफी ज्यादा मात्रा में मौजूद हैं। मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश व पश्चिम बंगाल के भूमिगत जल में सीसा, कैडमियम, डीडीटी आदि कीटनाशकों के साथ–साथ सल्फेट की अधिकांश मात्रा मौजूद है। वैज्ञानिकों की सर्वसम्मत राय है कि किसानों द्वारा अधिक पैदावार लेने के उद्देश्य से भारी मात्रा में रासायनिक खादों के इस्तेमाल से भूमिगत जल का प्रदूषण और बढ़ा है और इसमें वृद्धि हो रही है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार कृषि कार्य में इस्तेमाल की गई खाद का 50 फीसदी फसल में समा जाता है, 25 फीसदी मिट्टी में मिल जाता है और शेष 25 फीसदी भूमिगत जल में मिल कर उसे प्रदूषित करता है। मिट्टी में मिला 25 फीसदी खाद का हिस्सा नाइट्रोजन गैस के रूप में बदल जाता है। रासायनिक खादों का जो भी हिस्सा भू–जल से जा मिलता है, वही उस क्षेत्र के भूमिगत जल को प्रदूषित करने के लिए काफी है। नाइट्रेट का संकेद्रण ही भूजल के प्रदूषण का प्रमुख कारण है। औघोगिक संस्थानों, कारखानों, मिलों द्वारा बहाये जाने वाले रसायन, कूड़ा व प्रदूषित पानी ने जहां भू–जल व नदियों को प्रदूषित करने में अहम भूमिका निभायी है, वहीं नदियों का प्रदूषित पानी पीने योग्य न रहकर भयंकर जानलेवा बीमारियों को न्यौता दे रहा है। हमारे यहां प्रदूषित पानी पीने से हर साल 16 लाख, बच्चे अकाल मौत के मुंह में चले जाते हैं। देश में कुल बीमारियों में से 80 फीसदी प्रदूषित पानी पीने के कारण होती हैं। दुख इस बात का है कि हमारे यहां तकरीबन एक अरब दस करोड़ के लगभग रहने–बसने वाले लोगों को साफ पीने का पानी मुहैय्या कराने के लिए पानी की शुद्धता की जांच व उसे कीटनाशक–रसायन विहीन करने की कोई समुचित व्यवस्था ही नहीं है।
गुरुवार, 26 जून 2008
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें